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Sunday 31 January 2016

Tamasha 2015 Hindi 720p DVDRip 1Gb

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Tamasha 2015 Hindi 720p DVDRip 1Gb





Tamasha 2015 Hindi 720p DVDRip 1Gb
 
MoVie InFoIMDb
IMDB rating: 6.9/10 from 537 users
 
Genre: Comedy, Drama, Romance
Size: 1GB
 
Language: HINDI
QUALITY : 720p DVDRip
 
Directed by: Imtiaz Ali
Starring: Deepika Padukone, Ranbir Kapoor, Javed Sheikh
 
Story….Tamasha is about the journey of someone who has lost his edge in trying to behave according to socially acceptable conventions of the society. The film is based on the central theme of abrasion and loss of self that happens in an attempt to fit in oneself back.
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Tamasha 2015 Hindi 720p DVDRip 1Gb

   

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Fandry 2014 Marathi 480P DvdRip 300MB

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Fandry 2014 Marathi 480P DvdRip 300MB



Fandry 2014 Marathi 480P DvdRip 300MB
 
MoVie InFoIMDb
IMDB rating: 8.2/10
 
Genre:  Family, Drama
Size: 300MB
 
Language: Marathi
QUALITY: 480P DVDRip
 

Director: Nagraj Manjule

Stars: Somnath Awghade, Sanjay Chaudhri, Chhaya Kadam

Story.... Love, the most beautiful emotion in all living creatures that God has made knows no bar, caste or boundaries, is the central theme of Fandry. A young lad (Jabya) falls in love with his classmate. Incidentally, he belongs to a lower caste, a family below the poverty line which does all sorts of jobs in the village to survive like catching Pigs and the girl belongs to a higher caste. His parents are working hard to arrange money for their daughter’s wedding while Jabya is collecting money for new clothes to impress the girl. Fandry is a story of his aspirations, quest, sorrows, anguish and frustrations. Fandry also touches upon the age old monster of Caste System which is still lurking large upon the society.
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Fandry 2014 Marathi 480P DvdRip 300MB

    
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Prem Ratan Dhan Payo 2015 Hindi DvdRip 450MB

Prem Ratan Dhan Payo 2015 Hindi DvdRip 450MB
 
MoVie InFo : IMDb
IMDB rating: 5.1/10
 
Genre: Drama, Romance
Size: 450MB
 
Language:HINDI
QUALITY : DVDRip
Directed by: Sooraj R. Barjatya
Starring: Salman Khan, Sonam Kapoor, Neil Nitin Mukesh
Story….A king, who is loved by his subjects, wants to lead a normal life away from all the responsibilities and his kingdom, while his step brother plans to steal the throne from him. But things are changed when the king finds out the common man who looks exactly like him and they change their identities with each other temporarily.
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सेक्स का कीडा -Hindi Sexy Story

सेक्स का कीडा -Hindi Sexy Story
मेरा नाम राज है।तब मेरी उम्र १९ वर्ष थी मेरे अन्दर सेक्स का कीडा
भडक रहा था। मेरी छुटि्टयॉ चल रही थी। हमारे घर के सामने वाले घर मे एक लड़की
रहती है।उसका नाम पूजा है। हम दोनो बचपन से ही बहुत अच्छे दोस्त हैं। इस बार
मैं द्यर दो सालों के बाद आया था। मतलब की हम दोनो पूरे दो सालों के बाद मिले
थे। और अब वह पहले वाली पूजा नहीं थी अब वह बला की खूबसूरत हो गयी थी।
उसका भरपूर १७ वर्ष के जिस्म ने मेरे अन्दर की आग को और भडका दिया था। उसके
बूब्स काफी बडे थे वो उसकी टाईट टीशर्ट में बिल्कुल गोल दिखते थे जिन्हे
देखकर उन्हे हाथ में पकडने को जी चाहता था। वह अकसर शार्ट डे्रस पहना करती
थी।बचपन में मैने बहुत बार खेलते हुए पूजा के बूब्स को देखा था जो कि शुरू से
ही आम लड़कियों के बूब्स से बड़े थे और कभी कभी छू भी लेता था लेकिन मेरा मन
हमेशा उनको अच्छी तरह दबाने को करता रहता था लेकिन मुझे डर लगता था कि कहीं
वो अपने द्यर वालों न बता दे क्योंकि मेरी उसके बड़े भाई के साथ बिलकुल भी
नहीं बनती थी। वो पूजा को भी मेरे साथ न बोलने के लिये कहता रहता था लेकिन
पूजा हमेशा मेरी तरफ ही होती थी। लकिन अब पूजा बड़ी हो चुकी थी और जवानी उसके
शरीर से भरपूर दिखने लगी थी।मैं उस को चोदने के लिये और भी बेकरार हो रहा था।
लेकिन अब वह पहले की तरह मेरे साथ पेश नहीं आती थी।एसा मुझे इस लिये लगा
क्योंकि वो मेरे ज्यादा पास नहीं आती थी।दूर से ही मुस्करा देती थी।


लेकिन एक दिन मेरी किस्मत का सितारा चमका और मैने पहली बार एसा द्रिष देखा
था।उस दिन मैं तकरिबन ११ बजे सुबह अपनी छत पर धूप में बैठने के लिये गया
क्योंकि उन दिनों सर्दियां थी। मैं अपनी सब से ऊपर वाली छत पर जा कर कुरसी पर
बैठ गया।वहां से सामने पूजा के द्यर की छत बिलकुल साफ दिख रही थी।मैं सोच रहा
था कि पूजा तो स्कूल गयी होगी लेकिन तभी मैने नीचे पूजा की आवाज सुनी मैने
नीचे देखा पूजा के मम्मी पापा कहीं बाहर जा रहे थे। थोड़ देर बाद पूजा अन्दर
चली गयी।मैं सोच रहा था कि आज अच्छा मौका है और मैं नीचे जाकर पूजा को फोन
करने के बारे मे सोच ही रहा था कि मैने देखा पूजा अपनी छत पर आ गयी थी।मैं उस
को छुप कर देखने लगा क्योंकि मै पूजा को नही दिख रहा था।उस दिन पूजा ने शर्ट
और प्जामा पहन रखे थे और ऊपर से जैकिट पहन रखी थी।वह अभी नहाई नही थी।तभी उस
ने धूप तेज होने के बजह से जैकिट उतार दी और कुरसी पर बैठ गयी। उस ने अपनी
टांगे सामने पड़े बैड पर रख ली और पीछे को हो कर आराम से बैठ गयी जिस की बजह
से उस के बड़े बड़े बूब्स बाहर को आ गये थे।

मेरा दिल उनको चूसने को कर रहा था और मैं बड़े गौर से उस के शरीर को देख रहा
था।तभी अचानक पूजा अपने बूब्स की तरफ देखने लगी और उसने अपने हाथ से ठीक करने
लगी।उसके चारों तरफ ऊंची दीवार थी इसलिये उसने सोचा भी नही होगा कि उस को कोई
देख रहा है।उसी व्कत उस ने अपनी शर्ट के ऊपर वाले दो बटन खोल दिये।मेरे को
अपनी आंखो पर विशवास नहीं हो रहा था कि मै यह सब देख रहा हूं। मैने अपने आप
को थोड़ा संभाला। लेकिन तब मैं अपने लण्ड को खड़ा होने से नही रोक पाया जब
मैने देखा कि उस ने नीचे ब्रा नहीं डाला हुआ था और आधे से ज्यादा बूब्स शर्ट
के बाहर थे।मैने अपने लण्ड को बाहर निकाला और मुठ मारने लगा।

जब मैने फिर देखा तो पूजा का एक हाथ शर्ट के अन्दर था और अपने एक मुम्मे को
दबा रही थी और आंखे बन्द कर के मझे ले रही थी ।तभी उस ने एक मुम्मे को बिलकुल
शर्ट के बाहर निकाल लिया जो कि बिलकुल गोल और बहुत ही गोरे रंग का था।उसका
निप्पल बहुत ही बड़ा था जो कि उस समय इरैकट था और हलके भूरे रंग का था। मैं
यह सब देख कर बहुत ही उतेजित हो रहा था और अपनी मुठ मार रहा था। तभी उसने
अपनी शर्ट का एक बटन और खोल दिया और अपने दोनो बूब्स बाहर निकाल लिए। फिर
उसने अपने दोनो हाथों की उगलिुयों से निप्पलस को पकड़ कर अच्छी तरह मसलने
लगी। काफी देर तक वो अपने बूब्स को अच्छी तरह दबाती रही। थोड़ी देर बाद वह
कुर्सी से उठी और बैड पर लेट गयी। एक हाथ से उसने अपने बूब्स दबाने शुरू कर
दिए और दूसरा हाथ उसने अपने पजामे मे डाल लिया और अपनी चूत को रगड़ने लगी।

अब उस को और भी मस्ती चड़ने लगी थी और वह अपनी गांड को भी उपर नीचे करने लगी
थी।मैं अभी सोच ही रहा था कि खड़ा हो कर उस को दिखा दूं कि मैं उस को देख रहा
हूं तभी मेरा हाथ मे ही छुट गया और मैं अपने लण्ड को कपड़े से साफ करने लगा।
जब मैने फिर देखा तब तक पूजा खड़ी हो गयी थी लेकिन उसके बूब्स अभी भी बाहर ही
थे और वो वैसे ही नीचे चली गयी। लेकिन फिर भी मै बहुत खुश था लेकिन फिर मेरे
को लगा कि मैने पूजा को चोदने का मौका गवा दिया। मुझे खड़ा हो जाना चाहिए था।
एसा करना था वैसा करना था। तभी मेरे दिमाग मे एक आइडिया आया। और मैं जलदी से
नीचे गया और पूजा के द्यर फोन कर दिया। पहले तो वह मेरी आवाज सुन कर थोड़ी
हैरान हुई क्योंकि फोन पर हमारी ऐसे कभी बात नही हुई थी लकिन वह बहुत खुश थी।
लेकिन मैं उस से सेक्स के बारे में कोई भी बात नही कर सका। इधर उधर की बातें
करता रहे। उस दिन हम ने २ द्यटें बातें की और फिर उसका भाई विशाल आ गया था।
शाम को उसने मुझे फिर फोन किया और हमने १ द्यटां बति की और फिर रोजाना हमारी
फोन पर बातें होने लगी और द्यर पर भी अकसर आमने सामने हमारी बातें हो जाती
थी। छत पर भी हम एक दूसरे को काफी काफी देर देखते रहते थे। लेकिन मेरे को
उसके भाई से बहुत डर लगता था इस लिए जब वह द्यर पर होता था मै पूजा से दूर ही
रहता था।

एक बार विशाल की बजह से हमारी पूरे २ दिन बात नही हुई और हम दोनो बहुत परेशान
थे और हम छत पर भी नही मिल पाए और विशाल ने उस को हमारे द्यर भी नहीं आने
दिया था। उस दिन मैं पूरा दिन बहुत परेशान रहा क्योंकि पूजा मुझे सिर्फ एक
बार दिखी थी और हमारी बात भी नही हुई थी।रात के ९ बज चुके थे। मै बैठा पूजा
के बारे मे सोच रहा था।तभी बाहर की द्यटीं बजी। जब मैने गेट खोला तो देखा
बाहर पूजा खड़ी थी।

उसने मुझसे सिर्फ यह कहा "आज रात साढ़े बारह मै फोन करूंगी रजत मेरा मन नहीं
लग रहा है " और वापस चली गयी।

मैं एक दम से हैरान रह गया। मुझे विशवास नही हो रहा था। लेकिन मै बहुत खुश
था। पहली बार किसी से रात को बात करनी थी। गेट बन्द करके अन्दर गया और मम्मा
से कहा पता नही कौन था द्यटीं बजा कर भाग गया। ११ बजे सभी सो गए लेकिन मुझे
नींद कैसे आ सकती थी।मैने दूसरे फोन की तार निकाल दी थी और अपने कमरे वाले
फोन की रिंग बिलकुल धीमी कर दी थी और कमरे का दरवाजा भी बन्द कर लिया था।
तकरीबन १२:३५ पर फोन आया और पूजा बहुत ही धीमे स्वर मे बोल रही थी और उसने
बताय्या कि "विशाल ने हम दोनो को बात करते हुए देख लिया था।इसलिए उसने मुझे
तुमसे मिलने और फोन पर बात करने से मना किया है वह कहता है कि तुम अच्छे
लड़के नहीं हो। लेकिन मुझे तुम बहुत अच्छे लगते हो। तुमसे बात करके बहुत
अच्छा लगता है। मै तुम से बात किए बगैर नही रह सकती। इसलिए रजत हम रात को बात
किया करेंगे और इस समय हमें कोई डिसटर्ब भी नही करेगा खास कर विशाल"

ऐसे ही हमारी बहुत देर बातें होती रहीं और अब पूजा पूरी तरह मेरे जाल मे फस
चुकी थी। तब मैने पूछा कि तुम कमरे मे अकेली ही हो न इतनी धीमे क्यों बोल रही
हो। उस ने कहा कि मेरे कमरे का दरवाजा खुला है और मम्मी पापा साथ वाले कमरे
मे हैं। तो मैने उसको दरवाजा बन्द करने को कहा। उसने पूछा क्यों तो मैने कहा
कि उसके बाद मैं तुम्हारे पास आजाऊंगा बैड के उपर बिलकुल तुम्हारे साथ। तो वह
कहने लगी नहीं मुझे तुमसे डर लगता है। तुम मेरे साथ कुछ कर दोगे। तब मैने
उससे कहा कि मै कभी तुम्हारे साथ जबरदसती नही करूंगा। जो तुम्हे अच्छा लगेगा
हम वह ही करेंगे। मैने पूजा को अपना हाथ पकड़ाने के लिए कहा।

उसने कहा "पकड़ लो लेकिन आराम से पकड़ना" थोड़ी देर चुप रहने के बाद उसने कहा
"तुम्हारे हाथ पकड़ने से रजत मेरे को कुछ हो रहा है प्लीज अभी मेरा हाथ छोड़
दो"

मैने कहा ठीक है छोड़ देता हूं। लेकिन पूजा मैं तुम से लड़कियों के बारे मे
एक बात पूछना चाहता हूं। बताओगी।

उसने कहा "पूछो क्या पूछना चाहते हो।"

मैने हिचकचाते हुए कहा मैं पिरीअडज के बारे मे सब कुछ जानना चाहता हूं। पहले
पूजा चुप कर गई लेकिन थोड़ी देर बाद उसने मुझे सब कुछ बतायया और उसके बाद
हमारी सेक्स के बारे मे बातें शुरू हो गई। मैने उसको कहा कि मैने उसके बूब्स
देखे हैं। तो उसने कहा आप झूठ बोल रहे हो। तब मैने छत वाली बात बता दी कि मै
सब कुछ देख रहा था। वह थोड़ा शरमा गई और कहने लगी कि आप बहुत खराब हो। उसने
कहा कि ऐसा करने से उसको मजा आता है। थोड़ी देर बाद उसने कहा कि जब मैने पहले
उसका हाथ पकड़ा था तब उसकी टांगो के बीच में कुछ हो रहा था उसको बहुत मजा आ
रहा था और उसकी चूत में से बहुत पानी निकल रहा था जिस की बजह से वह द्यबरा गई
थी और इसी लिए उसने मुझे हाथ छोड़ने को कहा था।

तब उसने फिर से हाथ पकड़ने को कहा। मैने कहा ठीक है पकड़ा दो। थोड़ी देर बाद
उसने कहा कि उसकी पैंटी चूत के पानी से बिलकुल गीली हो गई है और उसके निप्पलज
भी बिलकुल इरैकट हो गए हैं।तब मैने उसको अपने कपड़े उतारने को कहा।तब उसने उठ
कर दरवाजा बन्द कर लिया और सारे कपड़े उतार दिए।फिर उसने बूब्स दबाने शुरू कर
दिए और सेक्सी सेक्सी आवाजें निकालने लगी।मेरा लण्ड भी बिलकुल खड़ा हो चुका
था।तब पूजा अपनी उंगली से चूत के ऊपर क्िलटरीज को दबाने लगी और फिर उसने
उंगली चूत के अन्दर डाल ली।

उसके मुंह से आवाजें आ रही थी।आहहहहहहहहहहहहहहह आह आहहहह वह कह रही थी " रजत
प्लीज चोदो मेरे को।अपना लण्ड मेरी चूत मे डालो।मेरे मुम्मों को चूसो।जोर जोर
से चोदो मेरे को।"

उस रात हमने सुबह ५ बजे तक बात की।उसको बाद हम अकसर रात को बातें करते
थे।लेकिन मैं उस दिन के इंतजार मे था जिस दिन मै उसको असली मे चोदूं। आखिर वह
दिन आ ही गया जब मेरा सपना सच हो गया। पूजा के एक रिश्तेदार अचानक बीमार हो
गये उसके मम्मी और पापा को उन्हें देखने के लिये जाना पडा। और किसी भी हालत
में उनके तीन दिन तक लौटने कि कोई उम्मीद नही थी।विशाल दिन भर दुकान पर
था।पूजा द्यर मे अकेली थी। लेकिन मम्मा की बजह से मै उससे बात नहीं कर पा रहा
था। मैं अपने कमरे मे चला गया।

मैंने एक सेक्स मैगजीन निकाला और देखने लगा। उसमें कुछ आपत्तिजनक तस्वीरे थी।
मैं उन्हें देख रहा था तभी अचानक पीछे से पूजा आ गई उसने पूछा क्या देख रहे
हो और वह मेरे बेड पर बैठ गयी।मैने पूछा कि मम्मा से क्या कहा है तब उसने कहा
कि आन्टी ने उसको जहां आते हुए नही देखा।तभी मैं उठा और मम्मा से कहा कि मैं
सोने लगा हूं और मैने दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया।फिर मैने उसके सामने वह
किताब रख दी वह उसे देखने लगी। फिर हम दोनो सेक्स के बारे में बातें करने
लगे। मैं उठकर उसके पीछे खडा हो गया मैने उसके कन्धे पर अपना हाथ रखा और
झुककर उसके कन्धों को चूम लिया। उसने कुछ भी प्रतिरोध नहीं किया यह मेरे लिये
बहुत था।

मै उसके सामने बैठ गया और उसके होठो को चूम लिया। मेरा हाथ तेजी से उसकी कमर
में पहुॅच गया और कसकर पकडकर उसे अपनी ओर खींच लिया। मेरे हाथ उसके बूब्स पर
पहुॅच गया और ऊपर से ही दबाने लगा।

उसके मॅुह से प्रतिरोध के शब्द निकले उसके मुॅह से निकला ओहहहहहहहहहहह नहीं
बस करो रजत।

लेकिन उसके हाथो ने उतना एतराज नहीं जताया। उसने एक ढीली ढाली टीशर्ट और
साइकलिंग शार्ट पहन रखा था। मेरा हाथ उसकी टीशर्ट के अन्दर उसकी ब्रा के ऊपर
से ही उसके उभारों को दबाने लगा। मेरी जीभ उसके मुॅह में द्यूम रही थी। अब
उसके तरफ से भी सहयोग मिलने लगा था। मैंने उसकी टीशर्ट निकाल दी उसने पहले ना
नुकुर की लेकिन मेरे हाथ का जादू उसके दिलो दिमाग पर छा रहा था। उसका
प्रतिरोध नामात्र का था। मैं उसके बूब्स को उसकी ब्रा के ऊपर से ही मुॅह मे
लेने लगा। और मेरा दूसरा हाथ उसकी जांद्यो के बीच के भाग को उसके कपडो के ऊपर
से ही सहलाने लगा। मेंने उसकी ब्रा का हुक खोल दिया उसका भरपूर यौवन मेरे
सामने था। जिनको मैंने बिना एक पल की देरी किये अपने मुॅह में ले लिया। वह
अपने वश में नहीं थी उसने मुझे कसकर पकड लिया।

मैने उसके बाकी बचे कपडो को उतार फेंका और उसे बेड पर लिटाया। मैंने अभी तक
अपने कपडे नहीं उतारे थे मैने अपने कपडे उतार दिये । मैं अब सिर्फ अन्डरवियर
में था।और उसके ऊपर वापस झुक गया। और उसके निप्पल को मुॅह में ले कर चूसने
लगा। मेरे हाथ उसकी जांद्यो के बीच की गहराइयों तक पहुॅच गये और उसके जननांग
को सहलाने लगे। उसने अपना हाथ मेरी अन्डरवियर में डालकर मेरे हथियार को बाहर
निकाल लिया। मैं नीचे गया और अपने होठ उसके जननांगों पर रख दिये उसके मुॅह से
एक सीत्कार निकल पडी। उसने मुझे अपने पैरो में फॅसा लिया। मेरी जीभ उसकी चूत
के अन्दर बाहर हो रही थी। उसने पानी छोड दिया मेरी जीभ को नमकीन स्वाद आने
लगा। उसने मेरे लण्ड को अपनी चूत में डालने के लिये मुझे ऊपर की ओर खींच
लिया। और बोलने लगी प्लीज इसे अन्दर डालो अब बरदाश्त नहीं होता।

मैंने एक पल की भी देरी नहीं की उसके टांगो को फैलाया और अपने लण्ड को उसके
चूत के ऊपर रखा । एक धीमा सा धक्का दिया वह पहले झटके को आसानी से सहन नहीं
कर पायी और दर्द से कराह उठी और चिल्लाने लगी ़़़़ ज़ल्दी निकालो मैं मर
जाऊॅगी। मैंने उसको कस कर पकडा और उसके निप्पल को मुॅह में लेकर अपनी जीभ से
चाटने और दांतों से काटने लगा। थोडी देर में ही वह अपनी कमर को आगे पीछे
हिलाने लगी। मेरा लण्ड जो कि अभी तक रमा की चूत के अन्दर ही था और बडा होने
लगा था। मेरे लिये अब यह पल बरदाश्त के बाहर था। मैंने भी आगे पीछे जोरो से
धक्के लगाने लगा। मेरी स्पीड लगातार बढ़ती रही उधर उसके मुॅह से उत्तेजित
स्वर और तेज होते रहे। और थोडी देर में हम दोनो अपनी चरम सीमा पर पहुॅच गये
फिर वासना का एक जबरदस्त ज्वार आया और हम दोनो एक साथ बह गये।

मैं उसके ऊपर ही लेटा रह गया। उसने मुझे कसकर पकड रखा था। थोडी देर में मैं
मुक्त था। पूजा छुप कर अपने द्यर चली गई।बाद दुपहर जब विशाल खाना खा कर वापस
दुकान पर चला गया मैं मम्मा से यह कह कर कि मै अपने दोसत के द्यर जा रहा हूं
पूजा के द्यर चला गया। फिर हमने शाम तक एक दूसरे के साथ सेक्स किया इक्कठे
नहाए और पूजा ने मेरे लण्ड को अपने मुंह मे डाल कर खूब चूसा और उसको लण्ड को
चूसने में ब्हुत ही मजा आ रहा था। शाम को जब मैं जाने लगा तो उसने कहा के आज
रात को वह मेरे साथ सोना चाहती है।मैने कहा यह कैसे हो सकता है। उसने कहा कि
आज रात को वह नीचे अकेली होगी और उसने कहा कि ११ बजे बाहर आ जाना वह गेट खोल
देगी। रात को मैं ११ बजे मैं छोटे गेट से उसको बाहर से ताला लगाकर पूजा के
द्यर के बाहर गया तब उसने गेट खोल दिया और मै अन्दर चला गया।पूजा गेट बन्द
करके अन्दर आ गई।

मैने पूछा विशाल सो गया क्या ।उसने कहा कि विशाल तो एक द्यंटे से सोया हुआ
है।तब मैने पूछा कि वह क्या कर रही थी। उसने कहा " आप से अच्छी तरह चुदने की
तैयारी कर रही थी।"

वह मेरे को अपने मम्मी पापा के बैडरूम मे ले गई और आप बाथरूम मे चली गई।
थोड़ी देर बाद जब वह बाहर आई उसने छोटी सी नाईटी जो कि बिलकुल पारदरशी थी
पहनी हुई थी। उसने नीचे कुछ भी नही पहना हुआ था। उसके मुम्मे और चूत दिख रहे
थे। उसने कहा के यह नाईटी मम्मा की है और आज वह मम्मा की तरह ही चुदना चाहती
है तब मैने पूछा कि मम्मा की तरह का क्या मतलब है। तो उसने कहा कि एक रात वह
बाथरूम जाने के लिए उठी तो उसने देखा कि मम्मी पापा के रूम की लाईट जल रही
थी। उसने खिड़की मे से देखा तो मम्मा ने यह ही पहनी हुई थी। उसके बाद उसने २
द्यंटे मम्मा को पापा से चुदते देखा।

थोड़ी देर बाद मैने देखा कि पूजा ने सारे बाल साफ कर हुए थे।उसके बाद हम फिर
से एक दूसरे के लिए बिलकुल तैयार थे।उस रात सुबह ५ बजे तक बिलकुल नन्गे एक
दूसरे की बाहों मे रहे और इस बीच मैने उसको तीन बार चोदा।उसने मेरे लण्ड को
बहुत चूसा। अगले दो दिन भी हम ऐसे ही एक दूसरे की बाहों मे मजे करते रहे। अब
हमें जब भी मौका मिलता है हम इसका आनन्द उठाते हैं।

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माताराणी (Marathi Chawat Katha)

माताराणी (Marathi Chawat Katha)
माताराणी
लेखक :- विकी



हजारो वर्षापुर्वी भारतवर्षात राजगड नावाचे एक राज्य होते. त्यावेळच्या अत्यंत प्रगत समजल्या जाणाऱ्या प्रदेशात या राज्याची गणना होत असे. तिथली राज्यव्यवस्था आदर्श असल्याने प्रजा सुखी होती. राज्यात सर्व आलबेल असल्याने त्या राज्यात अनेक शास्त्रे प्रगत झाली होती.

आडवाटेने जाणाऱ्या ट्रेकर्सना आजही या राज्याचे जुने अवषेश तेथे पहायला मिळतात. या अवषेशात एक फारच सुंदर कोरीव काम असलेले एक मंदीर आजही शाबुत आहे. या सर्व अवशेषात हेच मंदीर सर्वात उठुन दिसते. तेथील स्थानिक त्या अप्रतिम मंदिराचा उल्लेख माताराणीचे मंदीर असे करतात. असे मानले जाते की तिथल्या राजाने आपल्या आईच्या स्मृतीप्रित्यर्थ हे मंदीर बनवले. या मंदिराचे विषेश म्हणजे त्यात एकही देव वा देवीची मुर्ती नाही. मंदीराच्या आतल्या व बाहेरच्या बाजुला भिंतीवर वेगवेगळ्या स्थितीत कामलीला करणाऱ्या स्त्री पुरूषांची उत्कृष्ठ शिल्पे आहेत.

स्थानिक दंतकथेप्रमाणे तेथे धर्मवीर नावाचा राजा राज्य करत होता. त्याच्या राणीचे नाव होते नीलिमादेवी. त्यांना राजेन्द्र नावाचा एकच पुत्र होता. लहान वयातच राजकुमार राजेन्द्र कठोर परिश्रम घेवुन अनेक विद्या आत्मसात केल्या होत्या. वीस वर्षाचा राजबिंडा राजकुमार सडपातळ पण मजबुत अंगकाठीचा व तेजस्वी मुद्रेचा होता. युवा राजकुमार राजेन्द्र इतक्या लहान वयात पंचकोशीत धर्मशास्त्राचा एक गाढा विद्वान म्हणुन ख्यातीप्राप्त होता.

राजकुमाराला युध्दशास्त्राची फारशी आवड नव्हती. त्यामुळे नेहमीच्या दरबारातील रिवाजाप्रमाणे महाराज धर्मवीरांनी त्याला सेनापती न करता दरबारात राजपुरोहीत म्हणुन नेमले. महाराज राजेन्द्रला खास मान देत. राज्याच्या कारभारात प्रत्येक गोष्ट राजकुमाराला विचारुन करु लागले. राजकुमार महाराजांच्या शेजारी उच्चासनावर बसुन महाराजांना राज्यकारभारत मदत करु लागला. अल्पावधीतच राजकुमार राजेंद्र राजदरबारात महाराजांच्याखालोखाल महत्वाची बलशाली व्यक्ती बनली.

दिवसभर राज्याचे काम बघुन राजेन्द्र राजमहालातील माताराणीच्या देवळात ध्यान लावत व चिंतन करत. महाराज धर्मवीर व इतरांसाठी त्याचे दुहेरी व्यक्तीमत्व बनले होते. दरबारात राजपुरोहीत तर घरात लाडका पुत्र. पण त्यांच्या सुंदर मातेसाठी, महाराणी निलमदेवींसाठी तो अजुनही त्यांचा लाडका पुत्र होता. त्यांच्या नाजुक ओठावर मात्र पुत्राला प्रेमाने मारलेली ’राजा’ अशी हाकच कायम असे.

राजाचे वय जेमतेम वीस असताना दुर्दैवाने अचानक त्याच्यावरचे पितृछत्र हरपले. राजाचे आपल्या पित्यावर अतिशय प्रेम होते. महाराजांच्या अंतिम इच्छेप्रमाणे त्यांच्या देहावासानंतर राजपुत्राने राजेन्द्रने राज्याचा राजा व राजपुरोहित अशा दुहेरी जबाबदारी स्विकारली. राजदरबाराच्या रोजच्या कामकाजात तो विधवा राजमाता नीलिमादेवींचे सहाय्य घेत असे. ते दोघे इतर विद्वांनांबरोबर बसुन नेहमी आचरण व नीतीमत्ता अशा गहन विषयावर चर्चा करत. बरेचदा ही चर्चा राजदरबारात होई.

न्यायनिवाड्यासाठी अनेक कौटुंबीक बाबी दरबारात येत. त्या काळी एकाच कुटुंबात होणारे विवाह अनेकदा दरबारात चर्चीले जात. प्रजेची विनंती ऐकुन राजा आपली मान डोलावुन अशा विवाहांना मंजुरी देई. त्याला अनेकदा अचंबा वाटे कारण हल्ली मलगा व माता, भाउ व बहिण असे विवाह, मान्यतेसाठी मोठ्या प्रमाणात राजदरबारात येउ लागले होते. कुटुंबाच्या धनसंपत्तीचे विभाजन टाळण्यासाठी असे होत असावे असे राजेन्द्रला नेहमी वाटे .

महाराज राजेन्द्र महालात परतत तेव्हा राजमाता व त्यांच्या खास दासी दारात त्यांची रोज पंचारती करत. कुंकुमतिलक लावुन आरती झाल्यावर सेवक डोक्यावर फुले व अक्षतांचा वर्षाव करत. मग राजमाता सेवकांना बाहेर जाण्याचा आदेश देत. राजेन्द्र मातेचे चरण स्पर्श करुन त्यांना घट्ट आलिंगन देत व नंतर दोघे हात धरुन अंतपुरात शिरत.

तरुण महाराज काही काळ विश्रांती घेत. वामकुक्षीनंतर राजमाता निलिमादेवी त्यांना आपल्या शयनकक्षेत बोलवी. राजमातेचे कक्ष रोज फुलांनी सजावलेले असे. त्या महालात भिंतीवर लाल रेशमी कनतानी असत तर जमिनीवर उंची गालीचे. त्या भवनात राजमातेचा देव्हारा होता. तेथे नेहमी सुगंधी उदबत्ती व धुपाचा लावलेल्या असल्यामुळे तेथे कायम सुवास दरवळत असे. इतर सर्वांना तेथे मज्जाव असल्यामुळे तेथे नेहमी आसीम शांतता असे. तिशी पार करुनही अजुन तरुण व सुंदर दिसणाऱ्या निलीमादेवी आपली सर्व आभुषणे व राजवस्त्रे घालुन पुत्राचे स्वागत करत व राजाला राजवस्रे काढुन फक्त छोटे पिवळे वस्त्र नेसण्याची आज्ञा देत. राजा मातेची तो आदेश मानुन पालन करे. शास्त्राप्रमाणे पितांबराच्या आत अंत्वस्त्र घालायला परवानगी नसे.

राज्याचे कामकाज आटपुन दोघे ध्यान लावुन काही काळ तपस्चर्या करत. थोरले महाराज तंत्रविद्येत पारंगत होते. ते एका गुढ देवीच्या मुर्तीची पुजा करत. त्यांच्या अकाली देहांतामुळे ती पूजा अजुन सिध्द झाली नव्हती. मुत्युसमयी त्यांनी निलीमादेवींना राजेन्द्रकडुन ती पूजा सिध्दीला नेण्याची आज्ञा केली. तेव्हापासुन निलीमादेवी थोरल्या महाराजांची इच्छापुर्ती करत होत्या. माता व पुत्र त्या सुगंधी भवनात काही प्रहर ही थोरल्या महाराजांनी सांगीतलेली पुजाआर्चा करत.

पुत्राबरोबर सुरवातीला काही दिवस राजमाता आपली सर्व वस्त्रे पारिधान करुन राजाबरोबर बसत. जसे ग्रीष्म ऋतुचे आगमन झाले व बाहेरील वातावरण तप्त होवु लागले तसे त्यांच्या अंगाची काहीली होवु लागली. पुजासमयी त्या दोघांशिवाय अन्य सेवकांना मज्जाव असल्यामुळे, या तापापासुन बचावण्यासाठी, एक दिवस निलीमादेवींनी आपली आभूषणे व कमरेवरच्या वस्त्रांचा त्याग केला. त्यामुळे रोज कमरेवर कंचोळी व कमरेखाली एक छोटे वस्त्र असे राजमातेचे स्वरूप पाहण्याची राजाला सवय झाली.

कधीकधी आपल्या मातेचे कंचोळीआडुन डोकावणारे उन्नत वक्षस्थळे राजाला विचलीत करत. आपल्या बाजुला डोळे मिटुन आराधना करणाऱ्या मातेच्या सुंदर चेहऱ्याकडे, तिच्या नितळ त्वचेकडे, छातीवरील कुंभाकडे, सपाट पोट व कृश कटीकडे पहाताना राजाच्या लिंग ताठरुन वस्त्रात हालचाल होई व ते चुळबुळत राहत. पुजेनंतर निलीमादेवी त्या भवनातील मध्यभागी असलेल्या हौदात स्नान करत असे. आपल्या शयनकक्षेतुन राजाला आपल्या मातेच्या सुंदर नग्न मुर्तीचे कधीमधी ओझरते दर्शन होई व तरुण महाराजांना अस्वस्थ करुन सोडे.

एक दिवस राजा आपली सर्व वस्त्रे त्यागुन फक्त कमरेला लहान तलम धोतर लावुन मातेच्या कक्षात प्रवेश करत होते. त्याचवेळी पाठमोऱ्या होवुन निलीमादेवी आपली वस्त्रे उतरवताना राजाला दिसल्या. त्यांनी छातीवरील वस्त्र खाली टाकले व लपेटलेली साडी फेडु लागल्या. छातीवरती अंगावर तंग बसलेली कंचोळी होती. साडी त्यांच्या कमनिय शरीरापासुन वेगळी झाले व खाली पडली व कमरेखाली असलेले छोटे वस्त्र राजाला दिसले. आपल्या पाठमोऱ्या मातेचे घटासारखे प्रमाणबध्द पार्श्वभाग जणू संगमरवरात कोरलेले शिल्प भासत होते. केळ्याच्या खांबांसारख्या मांड्या, कोमल कटी असे ते मातेचे अर्ध्नग्न रुप राजा डोळे फाडुन पहात राहीला. किंचीत वळुन निलीमादेवींनी आपली कंचोळी उतरवली.

कंचोळी दुर होताच सुंदर वक्ष नजरेस पडले. निलीमादेवीनी कंचोळी खाली टाकली व आपल्या बोटांनी स्तनांला स्पर्श करुन दोन्ही स्तनाग्रे चिमटीत दाबली. मातेच्या उन्नत वक्षावरचे उमलणाऱ्या गुलाबकळी समान स्तनाग्रे पाहुन राजाचा श्वास काही क्षण जणु बंद पडला. राजाची चाहुल लागताच निलीमादेवी वळल्या. समोरुन इतक्या जवळुन राजाने निलीमादेवींचे वस्त्राशिवाय वरचे शरीर फार लहानपणी पाहीले होते. निशब्द होवुन तो पहात राहीला. निलीमादेवींनी दोन्ही स्तन स्वतःच्या हातात घेवुन एकदा वर ढकलले व छातीवर दाबुन सोडुन दिले. हे दृश्य पाहुन राजाचे लिंग कठोर होवुन उसळले. ते आपला आकार कैकपटीनी वृधींगत करुन कटीच्या वस्त्रात डुलु लागले. तश्या स्थितीत निलीमादेवीनी राजाचा हात पकडुन आसनावर बसवले व डोळे मिटुन आराधना करण्याचे आवाहन केले.

इतके दिवस किमान कपडे ल्यायलेली राजमाता तो जवळुन पहात होता. पण आज आईचे हे अर्धग्न रुप त्याला बेचैन करत होते, लोभावत होते. डोळे किलकिले करुन त्याने निलीमादेवीकडे पाहीले. त्यांचे डोळे बंद होते व हात जोडुन त्या पुजेत मग्न झाल्या होत्या. राजाची चेहऱ्यावरची नजर खाली ढळली व वक्षावर केंद्रीत झाली. स्त्रीचे स्तन इतके सुंदर असु शकतात हे त्याला प्रथमच जाणवले. परत डोळे मिटायला राजाला फारच प्रयास पडले.

राजाच्या बंद डोळ्यासमोर अजुनही ती सुंदर प्रतिमा तरळत होती. ते अप्रतीम गोरे स्तन, त्यावरचे तांबुस छोटी लिंगासारखी तरारलेली उन्नत व उत्तेजीत स्तनाग्रे काही केल्या हटत नव्हती. मांड्यामध्ये वस्त्र फाडुन बंड करण्याची धमकी देणारे आपले लिंग कसेबसे दाबुन राजा अवघडुन आसनावर बसला होता.

निलीमादेवींचे पतीचे निधन होवुन अनेक मास लोटले होते. पतीनंतर पुत्राशिवाय त्यांना कोणी निकटचे आप्त नव्हते. एका आश्रमात बाढलेली निलीमादेवी, विवाहाच्या समयी १४ वर्षीय अल्लड व अबोध बालीका होती. त्या माता झाल्या तेव्हा त्यांच्या बाळंतपणात त्यांचे वक्ष दुधाने भरुन कैक पट वर्धीत झाले. पुर्वीची कृश देहयष्टी चांगली भरली, तेजस्वी झाली. त्यानंतर २० वर्षांनी निलीमादेवी तितक्याच आकर्षक राहील्या किंबहुदा अधिक आकर्षक झाल्या. त्यांची उन्नत छाती, सपाट पोट, कृश कंबर अस त्यांचे स्वरूप तरूण वा वृद्धांना भुरळ घालण्यास समर्थ होते.

अजुनही त्यांच्या देहात मिलनासक्तता होती. त्या कामुक होत. पतीच्या निधनानंतर इतके मास पुरुषाचा सहवास नव्हता. युवा पुत्राला पाहुन ती ३५ वर्षाची स्त्री आपल्या पतीचे रुप आठवी व तळमळे. पण निलीमादेवीना आपल्या राजपदाची जाणीव होती व राजघराण्याशिवाय सामान्य पुरुषाकडे त्या पाहु शकत नव्हत्या. दिवसभरात दरबारात व पुजाघरात त्या ही अस्वस्थता कशीबशी सहन करत. पण शयनगृहात निद्रेची आराधना करताना आपल्या शय्येवर पहुडल्यावर त्यांचा देह बंड करुन उठे. कधी त्यांना पुत्राचे राजबिंडे रुप आठवे व पतीच्या सहवासा अभावी त्यांची कामभावना उसळुन वर येई. त्यांची शाही योनी स्त्रवुन शय्येवरचे वस्त्र ओले होई.

दुसऱ्या दिवशी नेहमीसारखा राजा त्यांच्या महाली दाखल झाला. चरणस्पर्श केल्यावर निलीमादेवींनी राजाला आलिंगन दिले व सेवकांना जाण्याची आदेश दिला. आज निलीमादेवी आपल्या शाही राजवस्त्रात व नखशिखांत आभूषणात मढलेल्या होत्या. तांबुलसेवनाने त्यांचे ओठ आरक्त झाले होते. राजाने पाहिले तर आज निलीमादेवींनी भाळी कुंकुम तिलक लावला होता. त्यांचा चेहरा एका वेगळ्या तेजाने झळाळत होता. त्यांच्या छातीवरच्या तलम वस्त्रातुन त्यांच्या कंचोळीच्या आतल्या स्तनांचा आकार व उभारलेले स्तनाग्र राजाला स्पष्ट दिसत होता.

निलीमादेवींनी राजाला हात धरुन शयनघरात नेले व धोतर काढुन छोटे वस्त्र घालुन आसनावर बसायचा इशारा केला. राजासमोर उभे राहुन त्या स्वतःची आभुषणे उतरवु लागल्या. राजा श्वास रोकुन तिरक्या नजरेने मातेकडे पहात होता. तो पहात असताना त्यांनी वस्त्रे उतरवण्यास सुरवात केली. वरचे वस्त्र फेडुन कांचोळी उतरवुन त्यांनी आपले स्तन दाबले व क्षणार्धात त्या कमरेवरच्या छोट्या वस्त्रावर अर्धनग्न होवुन राजासमोर उभ्या राहील्या. राजाला नजरेसमोर मातेच्या सुदौल मांड्या. गुप्तांग जेमतेम झाकणारे अंतर्वस्त्र, कोमल कटी व त्यावरचे हिंदकळणारे मस्तवाल स्तन व त्यांच्या बोंड्या दिसत होती. त्याने एक आवंढा गिळला व आपल्या काबुबाहेर जाणाऱ्या गुप्तांगाला संभाळण्याचा निष्फळ प्रयत्न केला.

राजाने आश्चर्यांने मातेला विचारले "माते आज इतकी काय निकड आहे की तु इतक्या तिव्र वेगाने पुजेला आरंभ करु पाहत आहेस?"

"राजा आजचा दिवस खुप महत्वाचा आहे. आज बरोबर एक वर्ष लोटले, तुझ्या पिताश्रींनी माताराणीची पुजा चालु केली. आज आपल्याला माताराणीदेवीची मनोभावे पुजा करुन पिताश्रींच्या आत्म्याला शांती देण्यासाठी प्रार्थना करायची आहे. मला वचन दे आजची पुजा तु मनोभावे व मी सांगीन तशी करायची. तरच तुझ्या पित्याचा आत्मा शांत होईल."

’माते हे तर माझे प्रथम कर्तव्य आहे. मी तु सांगशील तसेच करायचे तुला वचन देतो."

राजाकडुन वचन घेवुन निलीमादेवी त्याच्याशेजारी आसनावर बसल्या. "राजा तुला माहित आहे तुझ्या पित्याला तंत्रविद्या अवगत होती. ते या माताराणीला वश करण्याचा मृत्यु येई पर्यंत अटोकोट प्रयत्न करत होते."

"माते मी तुला माझा होकार दिला आहे. पण तु माझी उत्कंठता ताणत आहेस. या माताराणीला वश करायला आपल्याला काय करावे लागेल?" राजाने विचारले.

"बेटा आज मी तिला माझ्या देहात येण्याचे आवहान करणार आहे. माझ्या देहात तिने प्रवेश केला की तुझे कर्तव्य असेल की ती जे सांगेल ते ऎकुन तिची आज्ञा पालन करायचे. पण लक्षात ठेव तु माझ्या शरीरात शिरलेल्या माताराणीचे आज्ञा पालन करण्यात दिरंगाई व कुचराई केलीस तर तुझ्या पिताजींचा आत्मा कधीच शांत होणार नाही."

"माते मी पिताश्रींच्या आत्म्याच्या शांतीसाठी काहीही करायला तयार आहे. मी तसे तुला वचन देतो"

होकार्थी डोके हलवुन निलीमादेवीनी डोळे मिटले व माताराणीची आराधना चालु केली. राजा किलकिल्या डोळांनी मातेकडे पाहत होता. त्याने पाहीले की त्याची माता भक्तीभावाने तल्लीन होवुन हळुहळु डोलायला लागली. अचानक त्या जोरात किंचाळल्या. राजाने ताड्कन डोळे उघडुन मातेकडे पाहीले. ती जमिनीवर कोसळली होती. राजाने घाबरुन तिला उठवायचा प्रयत्न करुन तिला मिठीत घेतले.

"काय झाले माते? तु ठीक आहेस ना?"

त्याच्या मिठीतुन ताडकन सुटत ती ताठ बसली व घुमु लागली. अचानक तिच्या घशातुन चित्कारल्यासारखा आवाज निघाला. त्याचा आपल्या अंगावरचा हात झिडकारत ती घोगऱ्या आवाजात बोलली" अरे मुर्ख राजा मी तुझी आई नाही. मी आहे माताराणी. काही मासापुर्वी तुझ्या बापाने मला पाचारण केले होते. आज तुझ्या मातेने मला बोलावले आहे."

राजाने माताराणीला साष्टांग नमस्कार केला."बोल देवी मी तुझी कशी सेवा करु म्हणजे माझ्या पिताजींना शांती मिळेल?"

"राजा तुला माझी पुजा करावी लागेल" माताराणी किंचाळली व घुमु लागली.

"देवी तु आज्ञा देशील तसे मी करीन" राजा घाबरत बोलला "पण माझ्या पित्याच्या आत्म्याला शांती मिळु दे."

"मग ऎक तर. तुझ्या बापाने मला तृप्त केले नव्हते. माझा अतृप्त कामाग्नी शांत कर. माझ्या योनीत तुझे हत्यार घालुन चांगले कुटुन काढ. माझे समाधान कर. तरच तुझा बापाला शांती लाभेल. नाहीतर मी तुझ्या आईला ठार मारुन टाकीन. तु जर माझी इच्छा मानली नाहीस तर तुझे राज्य नष्ट तर होईलच पण तुझी प्रजा ही देशोधडी लागेल"

माताराणीचे हे बोलणे ऎकुन राजा घाबरला. त्याच्या तोंडुन शब्द फुटेना. "देवी मी तू म्हणशील तसे करीन पण तु कोपु नकोस."

राजा विचार करत होता. एक स्त्री म्हणुन कितीही आकर्षक असली तरी प्रत्यक्ष मातेशी संभोग करायचा तो चाचरत होता. त्याचे दुसरे मन त्याला माताराणीचे ऎकायला उदिप्त करत होते. समोर बसलेल्या एका अत्यंत सुंदर स्त्रीला जी त्याची माताही होती, तिला उपभोगायचे या विचारानेच त्याचे मलुल झालेल्या लिंगात रक्तप्रवाह जोरात सुरु होवुन ते परत उत्तेजीत झाले होते.

दुसरे मन म्हणत होते हे पाप आहे. जेथुन तुझा जन्म झाला तेथे त्या योनीत तु कसा प्रवेश करणार? राज्यदरबारात त्याने अनेक प्रकरणात मुलगा व माता यांना विवाह करण्यास संमती दिली होती. पण जेव्हा स्वतः त्याच परिस्थितीतुन जाण्याची वेळ आली तेव्हा त्याचे मन डोलामय झाले होते.

तो घीर एकवटुन बोलला "देवी तुझा आदेश पाळायचे मला धैर्य दे. मला कामशास्त्राचे शिक्षण मिळाले असले तरी संभोगाचा अनुभव नाही. मला तुझा आशिर्वाद दे की तुला मी तृप्त करीन. मला तुझा शिष्य बनव" असे म्हणुन त्याने माताराणीला प्रणाम केला.

"मला शयनगृहात ने" माताराणीने पहिली आज्ञा दिली.

त्याने आपल्या हातात माताराणीला उचलले व आपल्या मातेच्या शयनगृहात नेले व हलकेच तिच्या भल्या मोठ्या शय्येवर ठेवले. माताराणीचे डोळे किंचीत उघडे होते. "माझे चुंबन घे" दुसरी आज्ञा मिळाली.

राजा माताराणीच्या चेहऱ्याकडे पहात वाकला व तिच्या रक्तवर्णी आधराचे सुक्ष्म चुंबन घेतले. शय्येवर डोळे बंद करुन पहुडलेली ती साक्षात रतीदेवी भासत होती. तिच्या मुखाचे चुंबन घेताच तिने भक्षलेल्या तांबुलाची चव त्याला लागली. माताराणीने ओठाच्या पाकळ्या अलग करुन त्याला दिर्घ चुंबनासाठी आमंत्रीत केले. त्याने आपले ओठ उघडुन तिच्या मुखावर नेले. माताराणीने तिची जीभ राजाच्या मुखात फिरवली. तिच्या जीभेचे सेवन करत त्याने तिची जीभेचे चोषन केले.

माताराणीने त्याचा हात हाताने ओढुन आपल्या स्तनांवर आणला. तिथे किंचीत दाबुन ठेवला. तितका आदेश राजाला समजण्यास पुरेसा होता. त्याच्या हातात भरुन ही उरतील अशा आकाराचे माताराणीचे स्तन दाबण्यात त्याला मनस्वी आनंद होत होता. माताराणी तिचे अंग राजाच्या अंगावर घुसळत हात लांबवुन त्याच्या कटीच्या कपड्यावरुनच राजाचे शिश्न हस्तगत केले. राजाने माताराणीच्या आदेशाशिवाय माताराणीच्या जीभेचे चोषन चालु ठेवले. दोन्ही हाताने स्तनाचे मर्दन करत राजा काही क्षणापुर्वी वाटणारी माताराणीची भिती विसरुन आनंद लुटत होता.

"मुर्खा वाट कसली पाहतोस! उतरव माझे उरलेले वस्त्र " माताराणीने आदेश दिला. चुंबन न थांबवता त्याने आज्ञा पालन केले. माताराणीने तिच्या हातनी राजाचे कटीचे वस्त्र हासडुन काढुन टाकले. राजाचे भले मोठे अस्त्र हातात येताच माताराणीने भला मोठा सुस्कारा दिला. माताराणीचे कटीचे वस्त्र निघताच राजाचे लिंग तिच्या योनीप्रदेशावर घासले. माताराणीच्या योनीवर वाढलेले जंगल न पाहताही राजाला जाणवले. तिने राजाचे लिंग आपल्या कामसलीलाने ओल्या झालेल्या योनीमुखावर टेकवले. लिंगाचा सुपडा माताराणीच्या स्पंदणाऱ्या मदनध्वजावर राणीने स्पर्शीला. कित्येक मास माताराणीला तिच्या गुप्तांगावर पुरुषाच्या लिंगाचा स्पर्श नव्हता. त्यामुळे इतका आनंद माताराणीला सहन झाला नाही व ती स्खलीत झाली.

माताराणीने आपले शरीर आक्रसले व ती थरथरायला लागली हे त्याला लाणवले. त्याचे तिच्या मुठीतले लिंग तिने आपल्या योनीवर दाबुन धरले. राजाला स्त्रीच्या योनीचा हा पहीला स्पर्श! तो आपला आवेग थांबवु शकला नाही. त्याच्या नकळत त्याच्या लिंगाने विर्याच्या पिचकाऱ्या तिच्या मांडीवर सोडल्या. डोळे मिटुन दोघेही एकामेकाच्या मिठीत विसावले.

त्याने आपला हात माताराणीच्या पठीवर नेवुन तिला सावरले. तिचे थरथरणे थांबले व तिने डोळे उघडले. शय्येवर एका बाहुवर कलून राजाने माताराणीकडे पाहीले. त्याचा हात तिच्या वक्षावर ठेवला. माताराणी त्याकडॆ पाहुन स्मित हास्य केले. राजाने स्तनाचे शिखर नाजुकपणे बोटाने दाबले व हाताने स्तन दाबत त्याने तिच्याकडे पाहिले. तिचे स्तन त्याला अप्रतिम भासले. ती डोळे माताराणी मिटुन घुमु लागली. तिच्या त्या तिव्र स्वराने तो भानावर आला.

"राजा वाट कसली पाहतोस. तुझे लिंग माझ्या योनीत घुसवत का नाहीस." ती उठली व राजासमोर संपुर्ण नग्नावस्थेत उभी राहिली. राजाला जोरात ढकलुन शय्येवर लोळवले. त्या जोशात ती त्याच्या तोंडावर बसली. राजाने डोळ्यासमोर माताराणीची योनी क्षणभर चमकुन गेली. तिचा कामुक गंध त्याच्या नाकात भिनला. तिच्या योनीरसात मिसळलेले आपले विर्य त्याच्या चेहऱ्यावर लागले. माताराणीच्या योनीप्रदेशावर माजलेल्या राठ केसांच्या जंगलाने त्याचा चेहरा हुळहुळला. माताराणीच्या योनीवरचे केस भरपुर लांब वाढले होते. योनीचे मुख त्या जंगलात लुप्त झाले असा त्याला भास झाला.

माताराणीची योनी राजाच्या मुखावर आली. या क्षेत्रात अननुभवी असणाऱ्या राजाला कळले नाही माताराणीला त्याच्याकडुन काय अपेक्षा आहे. पण आपल्या पित्याच्या आतम्याच्या मुक्तीसाठी तो काहीही करायला तयार होता. तिची योनीच्या ओठाचा त्याच्या ओठाला स्पर्श होताच त्याचे मुख उघडले. जणु प्रतिक्षिप्त क्रियेने त्याची जीभ जंगलातून वाट करत तिच्या भेगेत प्रवेश करुन तिच्या मदनांकुरावर पोचली. जीभेला तिच्या योनीतला ओलावा जाणवताच तो योनी द्वार चाटु लागला. ती खारट्तुरट चव आवडुन जीभ त्याने अजुन आत रेटली व तो आत आत जात लपालप चाटत राहिला.

निलीमादेवींची योनी इतक्या आवडीने कोणी कधी चाटली नव्हती. तिच्या पुर्ण शरिरातुन सुखाची एक तिरिप गेली. पुत्राकडुन मिळणारे सुख ती बंद डोळ्याने ओरपत होती. राजा मात्र आता पेटला होता. अजुनही त्याच्या मनाने तो माताराणीशी लढत होता. मातेच्या शरीराशी जरी तो प्रेम करत होता तरी माताराणीला धडा शिकवण्याची त्याला इच्छा होती. कामज्वराने पिडीत माताराणीला या युध्दात आपण हरवु अशी त्याला खात्री होती.

त्याचे लिंग परत कठोर होवुन तिच्या हातात विसावले होते. हल्ली अनेकदा ओझरते दिसलेले तिचे उन्नत स्तन आज तो मुक्तपणे हातात घेवुन त्यांना पिळु शकत होता. तिचे पाय फाकवुन त्याने योनीपाकळ्या त्याच्या मुखात धरल्या. ओठाने त्या कोमल पाकळ्या उघडुन दाताने लवंगेच्या आकाराचा तिचा दाणा दातात त्याने जोरात चावला. त्याला अपेक्षीत असा परिणाम साधला गेला. तिने मांड्या आवळुन त्याचे डोके दाबुन ठेवले व वादळात झाड हलावे इतक्या जोराने ती थरथरली व त्याच्या जीभेवर पुनः पुनः स्खलीत झाली.

वदळातुन सावरलेल्या निलीमादेवी आपल्या पुत्राच्या जिव्हा कौशल्यावर बेहद्द खुश होत्या. मांडीची मिठी जरा सैल सोडत त्यांनी राजाला केसाला पकडुन वर खेचला व आपल्या स्तनावर त्याला दाबला.

त्या कडक स्तनाग्राचा स्पर्शाने त्याला उठुन त्यांचे नीट अवलोकन करायची इच्छा झाली. ते दृश्य पाहुन त्याचे लिंग आणखी मोठे होवुन कडक झाले आहे अशी त्याला भावना झाली. उपाश्याला जणु मेजवानी मिळली. माताराणीच्या स्तनावर तो तुटून पडला. तो एक स्तन तोंडात कोंबून दुसरा स्तन दाबत आनंद लुटत होता.

माताराणीने स्वहस्ते त्याचे भले मोठे हत्यार आपल्या योनीत घुसवले. रसाने ओली योनीने राजाचे लिंगाचा आत स्विकार करायला एक क्षणही लावला नाही. तिने आपला पार्श्वभाग उचलत त्याचे मुसळ योनीत पुर्ण भरुन घेतले. आत प्रवेश करताच राजाला तिच्या योनीची उष्णता जाणवली. एकदा स्खलन झाल्यामुळे त्याचे लिंग परत एकदम कठोर झाले होते. तिचे योनीमुख आकुंचन पावत व प्रसारत त्याच्या शिस्नाला मर्दन देत होते. या युध्दात ते इतके निकट आले की, त्याच्या लिंगावरचे केस त्याच्या मातेच्या योनीवरच्या केसात गुंतत होते. एका लयीत खाली वर होत दोघे स्वर्गीय संभोगाचा आनंद उपभोगत होते. ती माताराणी अजुनही कठोर अवजात गुरगुरत होती. पण सुरवातीचा तिचा जोश मावळत होता.

त्याने तिचे दोन्ही स्तन एकत्र दाबले व एकदम दोन्ही स्तनाग्रे तोंडात चोखु लागला. योनीत त्याचे पुर्ण ताकदीने केलेले प्रहार तिला सहन होत नव्हते पण तरी ती लय न तोडता त्याला साथ देत त्याचे लिंग तिच्या योनीत मुळापर्यंत खोलवर जात होते. त्या सुगंधीत कक्षात त्यांच्या मिलनात होणारे योनी व शिस्नाच्या स्र्तावांचे सुगंध दरवळला. त्या युध्दाचे उमटणारे ध्वनी भवनात भरुन घुमत राहिले होते. योनीत आतवर गेल्यावर त्याचे लिंग फुगुन मोठे अजुनही झाले. तिची योनी आपल्या प्रेमरसाचा वर्षाव त्याच्या आत बाहेर करणाऱ्या लिंगावर करत होती.

"रा....जा...!! माझ्या लाडक्या! कर! अजुन जोरात कर!! किती सुख देत आहेस तु तुझ्या मातेला " नीलिमादेवीनी माताराणीचा आवाज विसरुन आपल्या नेहमीच्या आवाजात प्रेम आलाप करत राजाला प्रेमाने आलिंगन दिले. मातेचा आवाज ऎकताच राजाने वर पाहिले. खरतर तोही वासनेच्या भरात माताराणी किंवा माता विसरुन केवळ एका मादीला भोगत होता. मातेच्या प्रेमालापाकडे दुर्लक्ष करत तो तिला भोगत राहिला.

"राजा तुझ्या प्रेमाला वंचीत भुकेल्या मातेवर प्रेम कर अजुन जोरात कर!" नीलिमादेवी बेभान होवुन बरळत होत्या. त्याला एक उमजले की माताराणी पराभुत झाली व त्याची माता परत आली आहे. इतकच नाही तर त्याची कामलिला तिला आवडत आहे व ती आनंदात हा खेळ आपल्याबरोबर खेळत आहे. तो जोपर्यंत त्या कामासक्त मादीला तृप्त ठेवील माताराणी त्यांना उपद्रव देणार नाही.

"माते तु माझे नाव घेत आहेस? माताराणीने तुला मुक्त केले का?’ त्याने न थांबता निलिमादेवींना विचारले.

"हो रे माझ्या लाडक्या. मी परत आले आहे. तुझ्या पराक्रमाने तु तिला पराभुत केलेस व माझी मोठ्या संकटातुन सुटका केलीस! पण तू तुझे कार्य सुरु ठेव व तिला परतायची संधी देवु नकोस." निलिमादेवी अनेकदा स्खलित होत सुखाच्या शिखराशी पोचत होती. इतके सुख निलिमादेवांना आयुष्यात कधीच उपभोगायला मिळाले नव्हते.

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Wednesday 27 January 2016

Marathi Sexy Story-अनिताचं धाडस

अनिताचं धाडस

अनिताला पुढच्या सूचना एका पत्रातून मिळाल्या. ठळक अक्षरांत ‘कॉन्फिडेन्शियल’ असं लिहिलेला पांढरा लिफाफा होता तो. पाकीट फोडण्यापूर्वीच अनिताचे पाय लटपटायला लागले. काल रात्री अमितशी झालेलं बोलणं तिला आठवलं.

काय असेल त्याचा पुढचा धाडसी प्लॅन?

गेल्या काही महिन्यांच्या त्यांच्या संबंधांमधून तिला स्वतःबद्दल आणि स्वतःच्या कामुकतेबद्दल नवनविन ज्ञान मिळत होतं. आपल्याला सेक्सबद्दल खूप काही माहिती आहे, असं अमितची ओळख होण्यापूर्वी तिला वाटत होतं. पण अमितशी संबंध आल्यापासून ती अशा अनेक गोष्टी करायला लागली होती, ज्यांची तिनं त्याआधी कल्पनाही केली नव्हती. तिचे स्वतःबद्दलचे अनेक गैरसमज गळून पडले होते. अमित भेटण्यापूर्वी आपण सेक्सच्या बाबतीत पूर्ण समाधानी आहोत, असं तिला वाटायचं. पण लवकरच, आपण समाधानी नसून आत्मसंतुष्ट बनलो असल्याचं तिच्या लक्षात आलं होतं.

तिच्या आणि अमितच्या दुसर्‍याच प्रणयावेळी त्यानं तिच्या डोळ्यांवर पट्टी बांधली होती. डोळ्यांना दिसत नसताना आपलं शरीर किती सेन्सिटीव्ह बनू शकतं, याचा अनितानं कधी विचारही केला नव्हता. प्रत्येक अवयव स्पर्शासाठी आसुसला होता, आणि पुढचा स्पर्श शरीराच्या कुठल्या बिंदूवर होईल, या उत्सुकतेनं ती प्रचंड उत्तेजित झाली होती. तिच्या शरीराला होणारा त्याचा प्रत्येक स्पर्श चिरकाल टिकावा, असंच तिला वाटत होतं, आणि तो प्रत्येक स्पर्श पुरेपूर उपभोगण्यासाठी ती धडपडत होती.

पुढच्या वेळी अमितनं तिचे हातपाय बेडला बांधून टाकले होते. स्वतःचं अनावृत्त शरीर, त्याचा उपभोग घेणारा आपला पार्टनर, त्याला मिळणारा आनंद समोर दिसत असतानाच, आपण स्वतः मात्र काहीही करु शकत नाही - ना विरोध करु शकतो, ना साथ देऊ शकतो - हे फीलिंग खूप वेगळं होतं. आपल्या सुंदर आणि तारुण्यानं मुसमुसलेल्या शरीराचं तो स्वतःच्या मर्जीप्रमाणं रसपान करतोय, आपल्या डोळ्यांदेखत... आणि आपण तो करेल ते, करेल तसं, फक्त अनुभवायचं. जबरदस्त असहाय्य भावना, तितकीच जबरदस्त उत्तेजना!

असे नवनविन खेळ रंगत चालले होते आणि अमितच्या कल्पकतेला दाद देत ती त्या सर्व खेळांचा मनसोक्त आनंद लुटत होती. विशेष म्हणजे, आपला स्वभाव आक्रमक आणि डॉमिनेटिंग आहे असं मानणारी अनिता, प्रणयाच्या खेळात अमितला सहज शरण जात होती. इतकंच नव्हे तर, हे असं पूर्णपणे शरण जाणं, आपलं शरीर त्याच्या हवाली करणं, तो करेल ते करुन घेणं, तो सांगेल ते करणं, हे सगळं तिला मनापासून आवडायचं. कुणीतरी आपल्याला डॉमिनेट करावं, आपल्याकडून काहीही करवून घ्यावं, असं तिला आता वाटायला लागलं होतं. स्वतःच्या स्वभावातल्या ह्या बदलानं तिला स्वतःला आश्चर्यचकीत केलं होतं.

काल रात्री अमित म्हणाला होता की उद्याचं धाडस आत्तापर्यंतच्या खेळाचा कळस असेल.

“मी सांगेन ते सगळं ऐकशील ना, अनि?” त्यानं विचारलं होतं.

त्याच्या नुसत्या विचारण्यानंच तिच्या अंगावर शहारा आला होता.

“हो रे राजा, तू म्हणशील तसं वागेन मी,” हळूवार आवाजात तिनं उत्तर दिलं होतं. आपल्याला इतक्या हळूवार बोलता येतं, हा शोधही तिला अमित भेटल्यावरच लागला होता.

“ठीकाय तर मग, उद्या तुझ्या ऑफीसमधे तुला एक पत्र मिळेल. त्या पत्रात तुझ्यासाठी पुढच्या सूचना असतील.”

...आणि आता खरोखरच तिच्या हातात ‘ते’ पत्र होतं!

थरथरत्या हातांनी तिनं पाकीट फोडलं. काय बरं लिहिलं असेल ह्यात? काय असेल अमितचा पुढचा धाडसी प्लॅन? आज काय करायला लावेल तो आपल्याला? थोडं घाबरत, थोडं लाजत, खूप उत्सुकतेनं तिनं आतला पांढराशुभ्र कागद बाहेर काढला, उलगडला, आणि वाचायला सुरुवात केली...

“सूचनाः-
  १. आजच्या धाडसी खेळासाठी रात्री ठीक आठ वाजता तयार रहायचं आहे.
  २. आजचा ड्रेस कोड आहे - शिफॉनची लाल साडी, मॅचिंग ब्लाऊज, मॅचिंग ब्रा-पॅन्टी, कानांत सोन्याचे झुमके, चांदीचा कमरबंद, आणि हाय-हील सँडल्स.
  ३. शार्प आठ वाजता एक मर्सिडीज तुला न्यायला येईल. कुठे जायचंय ते ड्रायव्हरला ठाऊक असेल. त्याच्याकडेच तुझ्यासाठी पुढच्या सूचना असतील. माझ्या सूचना पाळतेस तशाच त्याच्याही सूचना आज पाळायच्या आहेत.
  ४. याव्यतिरिक्त एकही वस्तू बरोबर घ्यायची नाही. पर्स किंवा इतर कुठल्याही गोष्टीची तुला गरज पडणार नाही.”

सूचना वाचून होईपर्यंत अनिताच्या छातीत धडधड वाढली. आज काय घडणार आहे, याच्या उत्सुकतेनं तिचं आत्ताच पाणी-पाणी व्हायला लागलं. अमित, ड्रेस कोड, रात्रीचे आठ, मर्सिडीजचा ड्रायव्हर... याव्यतिरिक्त तिला काहीच सुचेना. कामातून तर केव्हाच लक्ष उडालं. थोडीशी भीती, थोडी हुरहूर, थोडी गंमत, प्रचंड उत्सुकता... आतापर्यंतचे त्यांचे खेळ कितीही भन्नाट असले तरी ‘खाजगीत’ खेळले होते. कधी अनिताच्या घरी, कधी अमितच्या फ्लॅटवर, आणि एकदा एका हॉटेलवर. पण तिचं अमितला पूर्ण शरण जाणं हे सिक्रेटच होतं... जे आज एका तिसर्‍या माणसाला ठाऊक होणार - त्या मर्सिडीजच्या ड्रायव्हरला! अमितनं त्या ड्रायव्हरजवळ काही वेड्यावाकड्या सूचना तर दिल्या नसतील ना? अमितनं सांगितलंय, ड्रायव्हर सांगेल ते सगळं ऐकायचं... ड्रायव्हरनं आपल्याला गाडीतच कपडे काढायला सांगितले तर?? किंवा गाडीत बसताना त्याला किस्‌ करायला सांगितलं तर?? किंवा तो गाडी चालवत असताना आपल्याला खाली वाकून त्याचा...??? अरे देवा! हे काय कबूल करून बसलो आपण अमितजवळ? त्याच्यावर एवढा विश्वास टाकून आपण चूक तर नाही केली?

एकीकडं अशा शंका मनात येत असतानाच, आपल्याला कसलाही धोका पोहोचेल अशी परिस्थिती अमित निर्माण होऊ देणार नाही, असा विश्वासही तिला वाटत होता. त्या ड्रायव्हरनं गाडीतच आपल्याला कपडे उतरवायला लावण्याचा विचार जितका भीतिदायक होता तितकाच एक्सायटिंग पण होता, हे जाणवून ती स्वतःशीच हसली.

आठ वाजेपर्यंत अनिताचं तीन वेळा सगळं आवरुन झालं होतं. पहिल्यांदा तिनं लाल साडी नेसली होती, पण ती शिफॉनची नव्हती. नसू दे नसली तर, एवढं सगळं ऐकलंच पाहिजे का... असं म्हणत असतानाच नकळत तिनं ती साडी फेडून शिफॉनची लाल साडी शोधली होती. बर्‍याच दिवसांनी सोन्याचे झुमके बाहेर काढले होते. जीन्स आणि टी-शर्टवर हे झुमके घालायचा काही चान्स नव्हता, पण अमितला ते फार आवडतात, असं एक-दोनदा त्याच्या बोलण्यात आलं होतं. विशेष म्हणजे, आपल्याकडं चांदीचा कमरबंद आहे हे आपण अमितला कधी सांगितलं तेच तिला आठवत नव्हतं. पण तिच्याकडं असलेल्याच गोष्टी त्यानं पत्रात लिहिल्या होत्या, एवढं नक्की. त्याच्या हुशारीचं मनोमन कौतुक करत असतानाच...

...घड्याळात आठचे टोल पडले आणि रस्त्यावरुन कारचा हॉर्न ऐकू आला. अनिता धावतच जिना उतरुन बाहेरच्या पॅसेजमधे आली. गेटसमोर लांबलचक काळी मर्सिडीज उभी होती. सवयीनं खांद्याला लावलेली पर्स काढून तिनं हॉलमधल्या सोफ्यावर फेकली, मेन डोअर लॉक केलं, आणि गेट उघडून मर्सिडीजच्या दिशेनं चालत आली. युनिफॉर्ममधल्या ड्रायव्हरनं तिच्यासाठी मागचं दार उघडून धरलं. ड्रायव्हर मध्यम वयाचा आणि दिसायला शिष्ट वाटत होता. हा आपल्याला काही सूचना देणार आहे का, याचा विचार करत ती आत बसली. अतिशय अदबीनं दार बंद करुन ड्रायव्हर पुढे जाऊन बसला आणि त्यानं इंजिन स्टार्ट केलं. तिच्या अपेक्षेनुसार, मर्सिडीजमधून प्रवास करणं खरंच आरामशीर होतं, पण तिला उगीचच अवघडल्यासारखं वाटत होतं. आता हा ड्रायव्हर आपल्याला काय करायला सांगेल, केव्हा सांगेल, आणि त्यानं सांगितलेलं आपण खरंच ऐकायचं का... असे अनेक विचार तिच्या मनात खळबळ माजवत होते.

शहरातल्या गजबजलेल्या रस्त्यांवरुन मर्सिडीज सुसाट वेगानं धावत होती. हळूहळू आजूबाजूचं ट्रॅफीक विरळ होत गेलं आणि आपण शहर सोडून इंडस्ट्रीयल एरियामधे आल्याचं तिच्या लक्षात आलं. अरुंद रस्त्याच्या दोन्ही बाजूला दिसणारे कारखाने आणि ऑफीसच्या बिल्डींग तिला ओळखीच्या वाटत नव्हत्या. अचानक ड्रायव्हरनं मर्सिडीजचा वेग थोडासा कमी करुन एका गोडाऊनसारखं दिसणार्‍या प्लॉटमधे प्रवेश केला. मुख्य रस्त्यावरुन आत शिरण्याइतपत गाडीचा वेग कमी झाला असला तरी प्लॉटबाहेरच्या पाटीवरची अक्षरं वाचण्याइतकाही तो कमी नव्हता. प्लॉटमधे शिरल्यावर अनिताला दिसलं एक जुनंपुराणं गेट आणि एक पडकी वॉचमन केबिन.

कार थांबवून ड्रायव्हर बाहेर आला. मागे येऊन त्यानं अनितासाठी दार उघडून धरलं. ती उतरताच त्यानं दार बंद केलं आणि तिच्या दंडाला धरून त्या पडक्या वॉचमन केबिनमधे घेऊन गेला. अनितानं अजूनही त्या ड्रायव्हरचा आवाजसुद्धा ऐकला नव्हता. त्या चार बाय चार फुटाच्या छोट्याशा केबिनला पुढच्या बाजूला काउंटर होतं. काउंटरला बसलेला तरुण ड्रायव्हरला म्हणाला, “थँक्यू रमेश, आता पुढचं मी बघतो.” त्यावर ड्रायव्हर फक्त हसला आणि चटकन्‌ मागे वळून निघून गेला. आता अनिता एकटीच त्या अनोळखी पण देखण्या तरुणासमोर उभी होती. त्याच्या हसण्यात काही जादू होती.

“अनिता नाव ना तुझं? माझ्यामागून चल,” त्या तरुणानं आदेश दिला. अनिता निमूटपणे त्याच्या मागोमाग चालू लागली. दोघं त्या पडक्या बिल्डींगच्या मागच्या भागातील एका ऑफीससारख्या खोलीत आले. एका कोपर्‍यात मांडलेल्या टेबल-खुर्चीशिवाय खोलीत दुसरं काहीच नव्हतं.

“आजच्या अनोख्या धाडसासाठी तयार आहेस ना, अनिता?” त्यानं गंभीर होत विचारलं.

“अं? आहे कदाचित…” अनिता थोडी नर्व्हस होत म्हणाली.

“छान,” गूढपणे हसत तो म्हणाला, “आज रात्री जो कुणी तुला ज्या काही सूचना देईल, त्या सर्व निमूटपणे पाळायच्या आहेत. कुठलीही शंका मनात न ठेवता… आणि कुणालाही न विचारता. त्याबदल्यात तुला मिळेल असं सुख, ज्याची तू कधी कल्पनाही केली नसशील. तुला दिल्या जाणार्‍या सूचनांपैकी काही विचित्र किंवा विक्षिप्तही वाटतील, पण विश्वास ठेव, त्या सूचनांप्रमाणे वागल्यावरच तुला परमोच्च सुख मिळेल. तेव्हा कसलीही लाज, शरम, भीती न बाळगता फक्त जसं सांगितलं जाईल तसं करत जा.”

“ठीकाय. काय करावं लागेल मला?” अनितानं निश्चयपूर्वक विचारलं.

अनिताच्या मादक शरीरावर नजर फिरवत तो म्हणाला, “ऐक तर मग. सर्वप्रथम तुझे कपडे उतरवायला सुरु कर.”

“सगळे?” अनितानं दचकून विचारलं.

“नाही,” खट्याळपणे हसत तो म्हणाला, “तुझी पॅन्टी, कानातले झुमके, चांदीचा कमरबंद, आणि हाय-हील सँडल्स सोडून सगळं काढून टाक.”

आपण सूचना बरोबर ऐकली की नाही, तेच अनिताला कळेना. त्यानं अगदी स्पष्ट शब्दांत आणि भारदस्त आवाजात सूचना दिली होती. अनिताला मात्र उगाचच वाटलं की तो असं काहीच म्हणाला नाही. मोठ्या प्रयत्नानं त्याची सूचना पचवल्यावरही ती तशीच थांबून होती, तो खोलीच्या बाहेर जाण्याची वाट बघत… त्यानं निदान पाठ तरी फिरवावी असं तिला वाटलं. अर्थात आपण फारच अपेक्षा करतोय हे अनिताला कळत होतं, पण तरी…

उसन्या आवेशात तिनं खांद्यावरुन शिफॉनच्या साडीचा पदर खाली खेचला. आपणही या खेळात कमी नाही, हे दाखवून देण्यासाठी त्याच्या नजरेला नजर देत तिनं स्वतःच्या ब्लाऊजचं पहिलं हुक उघडलं. पण दुसर्‍या हुकबरोबर त्याची नजर खाली घसरलेली जाणवताच तिनं नकळत स्वतःकडं बघितलं. अतिशय तंग ब्लाऊजचे दोन हुक निघाल्यानं स्पष्ट दिसणारी मऊ गुलाबी ब्रा आणि त्यातून बाहेर पडायची धडपड करणारे गोरेपान मांसल उरोज बघून ती लाजेनं चूर झाली. अतिशय एक्साईट झाल्यानं तिचा श्वासोच्छवास जोरजोरात होऊ लागला होता, आणि त्याबरोबरच तिचे आधीच पुष्ट असणारे स्तन अजूनच फुलून येताना दिसत होते. खालमानेनंच तिनं ब्लाऊजचे सगळे हुक्स काढले आणि भराभर निर्‍या सोडवत शिफॉनची सुळसुळीत साडीदेखील फेडून टाकली. साडीनं पायापाशी लोळण घेताच, चोरट्या नजरेनं त्याच्याकडं बघत तिनं हात मागं नेले आणि दोन्ही हातांतून आपला तंग ब्लाऊज ओढून काढला. आपले दोन्ही हात मागं नेत आणि अर्थातच आपली पुष्ट छाती आणखी फुगवत तिनं ब्राचे हुक्सदेखील काढले, पण काही क्षण त्याच पोझमधे उभी रहात त्याच्याकडं बघू लागली. तिच्या फुलत जाणार्‍या वक्षस्थळांवर नजर रोखून तो उभा होता. आता यातून सुटका नाही, हे लक्षात आल्यावर अनितानं डोळे मिटले, दीर्घ श्वास घेतला आणि हळूहळू दोन्ही हातांच्या चिमटीत ब्राचे बंद पकडून ती अंगातून काढून टाकली. आता त्याच्या नजरेला नजर भिडवण्याइतकी हिंमत तिला वाटत नव्हती. आणि तेवढ्यातच तिला जाणवलं, मघाशी त्यानं बाहेर निघून जावं किंवा आपल्याकडं पाठ फिरवावी अशी अशक्य अपेक्षा आपण करत होतो. पण या परक्या तरुणासमोर निर्वस्त्र होत असताना आपण स्वतः पाठ फिरवू शकलो असतो की! पण आपण निर्लज्ज्पणे त्याच्या समोर आपलं एक-एक वस्त्र उतरवत... या विचारानं ती अजून शरमली.

“तुझे कपडे नीट घडी करून त्या टेबलावर ठेव,” त्याच्या पुढच्या सूचनेनं अनिता भानावर आली. तिनं डोळे उघडले पण त्याची नजर टाळत, पायाशी लोळण घेणारी साडी, ब्लाऊज, आणि ब्रा उचलून टेबलजवळ गेली. नीट घडी करून टेबलवर ठेवून ती खालमानेनंच त्याच्यासमोर, पण थोड्या अंतरावर येऊन उभी राहिली.

“आता पाठीमागे फिर आणि दोन्ही हात मागे घेऊन उभी रहा,” त्यानं पुन्हा गंभीर आवाजात सूचना दिली. आता पाठ फिरवून काय उपयोग, असा विचार करत ती मागं फिरली आणि मोठ्ठा आळस दिल्यासारखे दोन्ही हात मागं नेले. तो आपल्या दिशेनं येतोय याची चाहूल लागून ती शहारली. पुढं काय होईल याचा विचार करत असतानाच तिच्या नाजूक मनगटांना थंड धातूचा स्पर्श झाला. हे काय नविनच, असं म्हणेपर्यंत ‘क्लिक्‌’ असा आवाज होऊन तिचे दोन्ही हात त्याच पोजमधे त्यानं घातलेल्या बेडीत अडकले होते.

अरे देवा! आपण या इथं अनोळखी जागी, अनोळखी पुरुषाबरोबर, या अवेळी, अशा अवस्थेत… आणि आता इतके असहाय्य!! अंगावर नावापुरते कपडे, जवळ मोबाईल, पर्स काहीच नाही… असूनही काय उपयोग? दोन्ही हात असे मागं बेड्यांमधे अडकलेले. अमितचा पत्ताच नाही. आणि हा अनोळखी पण देखणा तरुण आपल्या इतक्या जवळ येतोय… मूर्ख! मूर्ख आहेस तू, अनिता. एवढा आंधळा विश्वास टाकतात का कुणावर? आणि तोही अमितसारख्या व्यक्तीवर… किती ओळखतेस तू त्याला? आता काय होईल तुझं इथं? ओह गॉड, काय करून बसले मी हे…

“चल,” असं म्हणून तिच्या चलण्याची वाट न बघता तो तिच्या दंडाला धरुन दरवाजाकडं निघाला. विरोध करण्यात काही अर्थच नव्हता. दरवाजातून बाहेर पाऊल टाकताच हवेची थंडगार झुळूक अनिताच्या सर्वांगावरुन फिरली आणि तिच्या डोळ्यात टचकन्‌ पाणी आलं. जड पावलांनी ती तो नेईल तिकडं जात होती. तो जवळजवळ ओढतच तिला अंधार्‍या पार्कींग लॉटमधे घेऊन आला. अशा अर्धनग्न अवस्थेत तिला त्या अंधाराचाही आधार वाटून गेला, पण…

पण हे काय? स्वतःच्या अर्ध-अनावृत्त शरीराची, स्वतःच्या असहाय्यतेची, या अनोळखी तरुणाच्या अनैच्छिक सहवासाची लाज, भीती वाटत असतानाच ती नकळत उत्तेजितही होत होती. आपल्या शरीरावरच्या एकमेव वस्त्राच्या आत गोड संवेदना जाग्या होत असलेल्या जाणवून ती प्रचंड लाजली. आपल्याला नक्की काय वाटतंय हेच तिला कळेनासं झालं. खोलीच्या बाहेर पडून या पार्कींगमधे येईपर्यंत शरीराला थंड हवा झोंबत असली तरी, चालताना त्याच्या शरीराच्या होणार्‍या पुसट स्पर्शानं, आपल्या उघड्या दंडावरच्या त्याच्या राकट पकडीनं तिला उबदार वाटायला लागलं. थंड हवेच्या मार्‍यानं की प्रचंड उत्तेजनेनं तिचे गडद चॉकलेटी रंगाचे निप्पल ताठरून आता दुखायला लागले. वाटत होतं, असे दोन्ही हातांच्या चिमटीत धरून जोरात… पण दोन्ही हात तर मागं बेडीत अडकलेले. मग काय झालं? त्याचे दोन्ही हात तर मोकळेच आहेत ना. ज्या राकटपणे त्यानं आपला दंड दाबून धरलाय, त्याच ताकदीनं जर त्यानं चिमटीत आपली ताठरलेली बोंडं…

स्वतःच्याच विचारांनी अनिता भयंकर दचकली. काही क्षणांपूर्वी आपण काय विचार करत होतो? या असहाय्यतेनं, लाजेनं आपल्या डोळ्यात आत्ताच पाणी आलं होतं आणि आता या अनोळखी पुरुषाच्या राकट हातांचा स्पर्श आपल्या सर्वात खाजगी अवयवाला व्हावा, असा विचार… की इच्छा?? देवा! काय झालंय मला? कसले विचार येतायत हे मनात? अमित, कुठं आहेस रे दुष्टा? तूच… तूच बनवलंस मला असं! उद्या आरशात स्वतःकडं बघू तरी शकेन की नाही मी??

पार्कींग लॉटच्या टोकाला एक छोटा दरवाजा होता. लाथेनंच तो दरवाजा उघडत त्यानं अनिताला आत ढकललं. एखाद्या मोठ्या पण रिकाम्या गोडाऊनसारखं काहीतरी होतं ते. अनितानं डोळे बारीक करून आजूबाजूला बघायचा प्रयत्न केला, पण खोलीच्या मधोमध उंचावर टांगलेल्या दिव्याशिवाय बाकी सारा अंधारच होता. त्यानं पुन्हा ओढत तिला त्या दिव्याच्या उजेडाखाली आणून उभं केलं. इतका वेळ अंधाराचं पांघरुण घेतलेला तिचा सुंदर देह पुन्हा एकदा ढळढळीत उघडा पडला. शरमेनं की अचानक डोळ्यांवर आलेल्या प्रकाशानं, तिनं डोळे घट्ट मिटून घेतले. काही क्षण अत्यंत शांततेत गेले. कसलीही हालचाल नाही, कसलीही चाहूल नाही. आपल्याला इथं सोडून तो निघून गेला की काय, असं वाटत असतानाच…

तिच्या रेखीव कंबरेवर तिला त्याचा राकट स्पर्श जाणवला. एक-दोनवेळा तो स्पर्श कंबरेच्या दोन्ही बाजूंनी हळूहळू वर सरकत काखेपर्यंत गेला आणि मग सर्रकन खाली घसरत तिच्या पॅन्टीच्या कडांमधे घुसला. पुढं काय होणार याची जणू कल्पना आल्यानं अनितानं आपले डोळे अजूनच घट्ट मिटून घेतले. त्याच्या दोन्ही हातांची बोटं तिच्या गुलाबी पॅन्टीच्या कडांना धरून खाली खेचत होती. मांडीपर्यंत आल्यावर तिची पॅन्टी अडकली. हात मागं बांधले असल्यानं, इच्छा असून-नसून तिला काहीही करता येत नव्हतं. त्याच्या डाव्या हाताची बोटं अधिकारानं मागून पुढं आली आणि तिच्या ओलसर योनीला पुसटसा स्पर्श करत, तिच्या पॅन्टीचा पुढचा भाग चिमटीत पकडून खाली खेचू लागली. पुढच्या क्षणाला तिच्या शरीरावरचं, नाममात्र असलं तरी, शेवटचं वस्त्र पायात गळून पडलं.

“बाहेर ये त्यातून,” त्याचा दमदार आवाज त्या रिकाम्या गोडाऊनमधे घुमला. तिनं अजिबात विचार न करता आपले पाय पॅन्टीमधून सोडवून घेतले. आता ती पूर्णपणे निर्वस्त्र, अनावृत्त, नग्नावस्थेत उभी होती. नाही म्हणायला तिच्या आकर्षक शरीरावर काही गोष्टी शिल्लक होत्याच - तिच्या कानांतले झुमके, चांदीचा कमरबंद, आणि हाय-हील सँडल्स. अर्थात लज्जारक्षणासाठी यातल्या कुठल्याच गोष्टीचा काहीच उपयोग नसला तरी, स्वतःला त्या रुपात कल्पून ती उत्तेजित होऊ लागली.

“अशीच उभी रहा,” पुढची ऑर्डर सोडून तो बाजूला झाला. अनितानं आता डोळे उघडले असले तरी त्याची आज्ञा मोडून मान वळवून बघावंसं तिला वाटलं नाही. काय करत असेल बरं तो, असा विचार करत असतानाच तिला काहीतरी ढकलत आणल्याचा आवाज आला. किंचित उजवीकडं नजर टाकल्यावर तिला तो दिसला. एक चाकं असलेलं टेबल ढकलत तिच्या दिशेनं येत होता. टेबल तिच्या कंबरेच्या उंचीचं होतं. टेबलाच्या पायांजवळ चामड्याच्या पट्ट्या सोडलेल्या होत्या. त्यानं ते टेबल तिच्या अगदी समोर आणून उभं केलं. मग पुन्हा तिच्या मागे जात तिला पुढं ढकलून टेबलाला टेकवलं.

“पाय फाकव, अनिता,” त्यानं हुकूम सोडला. आज्ञाधारकपणे तिनं दोन्ही पाय थोडे-थोडे बाजूला केले. “अजून फाकव,” तो ओरडला तशी ती घाबरून दोन्ही पाय पूर्ण फाकून उभी राहिली. आता तिची ओलसर योनी त्या टेबलावर अंथरलेल्या चामड्याला स्पर्श करत होती. तिचे पाय टेबलाच्या पायांपर्यंत पोचताच त्यानं चामडी पट्ट्यांनी तिचे दोन्ही पाय घट्ट बांधून टाकले. आता तिला जागेवरुन हलणं अजिबात शक्य नव्हतं. तिच्या मागं येत त्यानं तिचे हात बेड्यांमधून मुक्त केले.

तो हसत हसत तिच्या समोर येऊन उभा राहिला. तो असा तिच्या विवस्त्र शरीराकडं निरखून पाहत असताना अनिताची नजर आपोआप लाजेनं खाली झुकली. त्याचं हुकूम सोडणं सुरुच होतं.

“खाली वाकून पायांचे अंगठे पकड.”

ती खाली वाकताच तो पुढं सरकला आणि तिचे हात तिच्या पायांशी जुळवून त्यानं बांधून टाकले. कितीही धाडसी असली तरी अनिताला या असहाय्य अवस्थेची जबरदस्त भीती वाटली. आता या अवस्थेत तिला स्वतःहून कसलीही हालचाल करणं शक्य नव्हतं. तिची ओलसर योनी आणि भरगच्च नितंब ‘त्या’ अनोळखी पुरुषापुढं पूर्ण उघडे पडले होते. इतकंच नाही तर, तिचं ‘ते’ कोवळं, सुरकुतलेलं भोकदेखील त्याला आता व्यवस्थित दिसत असेल. तो आता काय करेल, याची चाहूल घेत ती स्वतःच्या श्वासांवर नियंत्रण मिळवण्याचा प्रयत्न करत होती. मिनिटभरासाठी तिला त्याची कसलीच हालचाल जाणवली नाही, पण मग तो आपल्या मागं, अगदी जवळ येऊन उभा राहिल्याचं तिला जाणवलं. आणि त्याबरोबरच तिला जाणवला एक अतिशय परिचित, पण त्या ठिकाणी अनपेक्षित वस्तूचा स्पर्श…

व्हॅसलिन! हो, नक्की व्हॅसलिनच होतं ते. आपल्या बोटावर व्हॅसलिन घेऊन तो तिच्या सुरकुतलेल्या भोकाशी चाळा करत होता. थोडा वेळ त्याभोवती गोल-गोल फिरवून त्यानं भसकन्‌ आपलं बोट तिच्या गुदेत घुसवलं. क्षणभरासाठी अनिताचा श्वास अडकला.

अमितला भेटण्यापूर्वी आपल्या ‘या’ भोकाचा दुसरा काही उपयोग तिला माहीतच नव्हता. अमितबरोबर पाहिलेल्या पॉर्न व्हिडीओमधे गुदासंभोगाचं दृश्य आलं की तिला किळस वाटायची. ती अमितवर आरडाओरड करुन ते दृश्य बंद करायला लावायची. पण एकदा तिचे हातपाय बेडला बांधून त्यानं डॉमिनेटिंग सेक्सचा प्रकार तिला शिकवला होता, त्यावेळी तिच्या विरोधाला न जुमानता त्यानं एक रबरी प्लग तिच्या गुदेत घुसवला होता. सुरुवातीला कळवळून किंचाळणार्‍या अनिताला थोड्या वेळातच या प्रकाराची मजा जाणवली होती. त्यानंतर मात्र जेव्हा-जेव्हा अमित तिच्या योनीचं रसपान करायला खाली सरकायचा, तेव्हा-तेव्हा ती त्याला एक तरी बोट मागं घुसवायची विनंती करु लागली होती. खरंतर अमितला तो प्रकार खूप आवडायचा, पण केवळ अनिताला सतावण्यासाठी तो तिला आठवण करून द्यायचा, तिच्या नकाराची आणि किळस वाटण्याची…

पण आज इथं असं या अनोळखी पुरुषाचं बोट तिच्या कोवळ्या गुदाभोकात मुक्त संचार करताना तिच्या मनात असंख्य भावनांचा कल्लोळ दाटला होता. स्वतःच्या असहाय्यतेबद्दल संताप वाटत होता. त्या घुसखोराच्या निर्लज्ज आगाऊपणाचा राग येत होता. आपल्याला अशा परिस्थितीत आणून सोडणार्‍या अमितबद्दल घृणा वाटत होती. त्याचं बोट आत-आत शिरताना वेदनेनं डोळ्यांत पाणी दाटलं होतं. आणि त्याचवेळी, एका अनोळखी जागी विवस्त्रावस्थेत एका अनोळखी पुरुषाचं बोट आपल्या गुदाभोकात फिरतंय, या जाणीवेनं ती प्रचंड उत्तेजितही झाली होती.

थोडा वेळ तिच्या भोकात बोट आत-बाहेर करुन झाल्यावर त्यानं एक जाडजूड रबरी प्लग जबरदस्तीनं तिच्या भोकात घुसवला. व्हॅसलिनमुळं त्रास थोडा कमी झाला तरी, तिच्या कोवळ्या भोकाच्या मानानं प्लगचा आकार बराच मोठा होता. पण कळवळून ओरडण्याशिवाय अनिता काहीही करु शकत नव्हती. प्लग पूर्ण आतमधे सारून झाल्यावर त्यानं तिच्या गोर्‍यापान नितंबावर एक जोरदार चापट मारली आणि तिच्यापासून लांब झाला. अनिता रडणं-ओरडणं थांबवून मोठ्ठा श्वास घ्यायचा प्रयत्न करत होती, तेवढ्यात…

“फटॅक्‌” आवाजापाठोपाठ अनिताचा अक्षरशः हंबरल्यासारखा आवाज त्या खोलीत घुमला. या क्षणी तिला अमितचा प्रचंड राग आला. त्या दोघांमधल्या अतिशय खाजगी गोष्टी त्यानं नक्की या अनोळखी माणसाला सांगितल्या असणार. नक्कीच! त्याशिवाय, कामाच्या ठिकाणी नेहमी बॉसिंग करणार्‍या अनिताला सेक्समधे मात्र डॉमिनेट करुन घ्यायला आवडतं, हे या माणसाला कसं कळलं असतं? मघाशी आपल्या गुदेत त्याचं बोट फिरत असताना आपण रडत-ओरडत असलो तरी आपल्याला ते बोट फिरवणं मनापासून आवडतं हेही त्याला ठाऊक असणार. आणि आता तर तिला होणार्‍या शारीरिक वेदनेची अजिबात फिकीर न करता, तिच्या प्रतिक्रियेचा अंदाज न घेता, ज्या निर्दयतेनं त्यानं चाबूक फटकावला होता, त्यावरुन तर नक्कीच त्याला अमितनं सगळा अंदाज दिलेला असणार याची तिला खात्री पटली. अतीव वेदनेतून परमसुख मिळवण्याची ही ट्रिकदेखील तिला अमितनंच शिकवली होती. बाहेरच्या जगात, समोरच्या माणसानं आवाज चढवून बोललेलं देखील अनितानं खपवून नसतं घेतलं. पण या खाजगी जगात मात्र आपल्याला कुणीतरी भयंकर यातना द्याव्यात, शारीरिक जबरदस्ती करावी, ही तिची सर्वात मोठी फॅन्टसी होती. या माहितीचाच फायदा घेऊन हा माणूस आपल्या शरीराशी खेळतोय, हे जाणवून तिला रागही आला आणि त्याच वेळी अत्यंत उत्तेजितही वाटलं. तिच्या मनात हे सगळे विचार येत असताना, त्यानं मात्र आपलं चाबूक उडवायचं काम चालूच ठेवलं होतं. तिचे गोरेपान नितंब आता चेरीसारखे लालभडक आणि तापलेल्या तव्यासारखे गरम झाले होते.

दहा-पंधरा फटके मारुन झाल्यावर त्यानं चाबूक बाजूला फेकून दिला आणि अनिताच्या हुळहुळणार्‍या लालबुंद गोळ्यांना तो कुरवाळू लागला. अतीव यातनेनंतर ते कुरवाळणं अनिताला हवंहवंसं वाटू लागलं. अजून थोडा वेळ त्याचे हात तिथं फिरत रहावेत असं तिला वाटत असतानाच तो थांबला आणि तिच्या समोर येऊन उभा राहिला. खाली वाकून तिचे हात सोडवत त्यानं तिला सरळ उभं केलं. तिचे नाजूक हात आपल्या हातात घेत त्यानं वर उचलले. वरुन एक मजबूत दोर लोंबत असलेला अनिताला दिसला. त्यानं सफाईदारपणे तिचे दोन्ही हात जुळवून त्या दोरात गुंफून टाकले. करकचून गाठ मारुनच तो बाजूला झाला. छताला टांगलेल्या पुलीवरुन तो दोर पलिकडं बांधलेला होता. त्यानं ते बांधलेलं टोक सोडवून आपल्या हातात घेतलं आणि जोर लावून तो दोर खेचायला लागला. त्याच्या हातात वाढणार्‍या दोराबरोबर अनिताचं शरीर वर-वर खेचलं जात होतं. कसलाही प्रतिकार न करता अनिता आपलं शरीर खेचलं जाऊ देत होती. तिच्या दोन्ही टाचा उचलल्या जाईपर्यंत त्याचं दोर खेचणं सुरु राहिलं. आता अनिता आपल्या हाय-हील्सच्या पंजांवर शरीराचा तोल सांभाळत उभी, नव्हे लोंबकळतच होती. दोराचं टोक पुन्हा बांधून तो तिच्या समोर येऊन उभा राहिला. दोन्ही हात वर खेचले गेल्यामुळं अनिताचे भरगच्च स्तन आता अगदी ताठ उभे झाले होते. वरुन खाली बघताना तिला स्वतःचे निप्पलदेखील जरा जास्तच टोकदार दिसत होते.

आणि मग, तिच्या निप्पलभोवतीच्या चॉकलेटी वर्तुळांवरुन बोटं फिरवत त्यानं अचानक तिचे दोन्ही टोकदार निप्पल चिमटीत पकडून जोरात ओढले. कळवळून ओरडत अनिता जागच्या जागी धडपडू लागली. खालून पाय आणि वरुन हात बांधलेले असल्यानं तिच्या धडपडण्यालासुद्धा मर्यादा होत्या. त्याचं बोटांच्या चिमटीत निप्पल पकडून ओढणं आणि सोडणं सुरुच होतं. हळूहळू अनिता पुन्हा उत्तेजित व्हायला लागली. डोळे मिटून, मान मागं फेकत तिनं आपलं शरीर त्याच्या दिशेनं पुढं सारलं. जणू तो वेदनादायी चिमटा तिला पुन्हा-पुन्हा हवा होता.

मधूनच त्यानं एका छोट्याशा डबीतनं कसलंतरी लाल रंगाचं क्रीम बोटांवर घेतलं. अगदी हळुवारपणे, मलम लावल्यासारखं ते क्रीम त्यानं तिच्या दोन्ही निप्पल्सभोवती लावलं. पुन्हा डबीत बोटं बुडवून त्यानं आणखी थोडं क्रीम काढलं. आता त्याचा हात खाली तिच्या योनीप्रदेशात चाचपडू लागला. तिच्या बारीक-बारीक केसांमधून तिच्या योनीपाकळ्या शोधून त्यानं तिथंही ते क्रीम चोपडलं. मग मागं जात त्यानं ते क्रीम रबर प्लगच्या बाजूबाजूनं तिच्या गुदाभोकातसुद्धा सारलं. आपल्या तिन्ही ‘खाजगी’ अवयवांवर त्या थंड क्रीमचा स्पर्श जाणवून अनिता अजूनच उत्तेजित होत होती.

पण काही सेकंदांतच ते थंड वाटणारं क्रीम तिला उबदार वाटायला लागलं. आणि हळूहळू ते क्रीम लावलेल्या ठिकाणी तिला खाज सुटू लागली. आपले स्तन कुणीतरी जबरदस्त कुस्करावेत, असं तिला तळमळून वाटू लागलं. स्वतःचे स्तन दाबण्यासाठी, स्वतःची ताठरलेली बोंडं चिरडण्यासाठी ती आपले हात सोडवण्याचा प्रयत्‍न करु लागली. आत्ता या क्षणी तिला त्याच्या राकट बोटांची गरज होती, तिच्या चुरचुरणार्‍या निप्पल्सवर आणि तिच्या खाजणार्‍या योनीमधे…

आणि त्याच वेळी तिला जाणवला त्या थरथरत्या वस्तूचा स्पर्श. तसा अमितनं तिला एक मिडीयम साईझचा व्हायब्रेटर गिफ्ट केला होता, पण आजतागायत तिनं एकटीनं तो कधीच वापरला नव्हता. अमितकडूनच ती तो व्हायब्रेटर स्वतःवर चालवून घ्यायची. पण आत्ता तिच्या खाजणार्‍या योनीपाकळ्या विलग करत आत घुसलेला व्हायब्रेटर बर्‍याच मोठ्या साईझचा वाटत होता. शिवाय त्याचे व्हायब्रेशन्स तिच्या अपेक्षेपेक्षा खूपच जोरात जाणवत होते. खाली दोन्ही पाय बांधलेले असले तरी मांड्या फाकवून ती व्हायब्रेटरसाठी जास्तीत जास्त जागा करुन देत होती. तिच्या नाजूक योनीचा अंदाज घेत तो हळूहळू एक-एक इंच पुढं सरकत होता. अनिता मात्र त्या क्रीममुळं आणि एकंदरीतच त्या अवस्थेमुळं इतकी उत्तेजित झाली होती की स्वतःचं संपूर्ण शरीर पुढं ढकलून ती तो व्हायब्रेटर आत-आत घ्यायचा प्रयत्‍न करत होती. तो जाडजूड व्हायब्रेटर पूर्ण आत घेतल्यावर ती थरथरत त्याचं व्हायब्रेशन उपभोगत उभी राहिली.

दोन्ही पाय खाली बांधलेले. दोन्ही हात वर खेचून बांधलेले. अशा अज्ञात ठिकाणी, अनोळखी पुरुषासमोर पूर्णपणे असहाय्य, अनावृत्त, उत्तेजित अवस्थेत लोंबकळणारी अनिता आयुष्यातलं परमसुख अनुभवत होती. तिच्या गुदाभोकात गच्च बसलेला प्लग आणि तिची योनी भरुन थरथरणारा व्हायब्रेटर. वरुन त्या लाल क्रीममुळं चुरचुरणारे निप्पल्स. त्या अनोळखी पुरुषानं आत्ता तिची दोन्ही बोंडं चिरडावीत, चावावीत, तिचे गुबगुबीत मांसल गोळे कुस्करावेत, असं तिला मनापासून वाटत होतं. तिच्या दोन्ही भोकांतल्या त्या दोन वस्तू शरीरात खूप खोलवर घुसल्यात असं तिला वाटत होतं. त्यानं केव्हाच व्हायब्रेटर आत ढकलणं थांबवलं होतं, पण अनिता स्वतः त्याला आत-आत घ्यायचा प्रयत्‍न करत होती. दोन्ही भोकं आवळून, मनगटं आणि घोट्यांना ताण पडेपर्यंत ओढून तिनं आपलं संपूर्ण शरीर ताणलं आणि एक जोरदार किंकाळी फोडत ती सुखाच्या परमोच्च बिंदूवर पोहोचली. तिच्या आयुष्यात पहिल्यांदाच तो क्षण इतका वेळ टिकला. तिच्या योनीचे स्नायू जसे ढिले पडू लागले तसे तिच्या गुदेतले स्नायू ताठरु लागले. आणि उत्तेजनेची पहिली लाट ओसरण्यापूर्वीच पुन्हा तिचं शरीर ताठरलं. गुदेत खुपसलेल्या रबरी प्लगमुळं तिनं लागोपाठ दुसरा ऑरगॅजम अनुभवला. एकाच वेळी अतीव वेदना आणि परमसुखाचा अनुभव ती घेत होती.

हळूहळू तिचं शरीर ढिलं पडू लागलं. लोंबकळलेल्या अवस्थेत तिचा चेहरा तिच्या छातीवर झुकला. त्यानं पुढं होऊन तिच्या योनीतला व्हायब्रेटर उपसून काढला. तिच्या शरीरात पुन्हा त्राण यायला थोडा वेळ लागला. थोडीशी ताकद एकवटून जेव्हा तिनं मान वर उचलली तेव्हा…

...खोलीतले सगळे लाईट लागलेले होते. त्या लख्ख उजेडात तिला दिसल्या साधारण पंधरा खुर्च्या, तिच्यापासून फक्त दहा-एक फुटांवर. अविश्वासानं ती त्या खुर्च्यांकडं, आणि अर्थातच त्यावर बसलेल्या लोकांकडं बघत राहिली. साधारण तीस ते पन्नास वयाचे पुरुष… आणि स्त्रियासुद्धा होत्या त्यात. सगळे आनंदानं आणि कौतुकानं अनिताकडंच बघत होते. सगळ्यात शेवटच्या खुर्चीवर अमित बसला होता, तिच्याकडं अभिमानानं बघत. अमितला बघताच तिला हायसं वाटलं. पण दुसर्‍याच क्षणी तिला स्वतःच्या अवस्थेची आणि नुकत्याच घडलेल्या ‘प्रदर्शना’ची आठवण झाली. लाजेनं चूर होऊन तिनं मान खाली घातली, पण आपलं अनावृत्त शरीर झाकण्यासाठी स्वतःचे हातसुद्धा हलवू शकत नव्हती. आणि तसंही आता काय लपवायचं होतं? सगळा ‘शो’ तर मिटक्या मारत बघितलाच की त्यांनी…

तिच्या डोक्यात या सगळ्या विचारांचा गोंधळ चालू असतानाच, तिला मागून थंडगार पाण्याचा स्पर्श जाणवला. इतका वेळ तिच्या शरीराशी खेळणारा तो अनोळखी तरुण, हातात पाण्याचा पाईप घेऊन तिला ‘थंड’ करत होता. दोन्ही हात आणि पाय बांधलेल्या अवस्थेत त्याच्याकडून आंघोळ घालून घेण्याशिवाय तिच्याकडं कुठला पर्यायच नव्हता. तिच्या नग्न शरीराला वळसा घालत त्यानं तिला डोक्यापासून पायापर्यंत पूर्ण भिजवून टाकलं. आधी नितंबावर पडलेले चाबकाचे फटके, मग बांधल्यामुळं हाता-पायांना आलेली रग, त्या क्रीममुळं आणि त्याच्या हाताळण्यामुळं हुळहुळणारे स्तन आणि निप्पल्स, दोन्ही दिशांनी झालेलं अनपेक्षित आक्रमण सोसलेली तिची दोन्ही नाजूक भोकं, आणि या सगळ्या प्रकारात तापून उठलेलं तिचं जवान कोमल शरीर… अशा वेळी त्या थंडगार पाण्याची तिला खरंच गरज होती!

तिला पूर्ण भिजवून झाल्यावर त्यानं पाणी बंद केलं आणि पुढं येऊन तिचे पाय मोकळे केले. बराच वेळ फाकवून धरलेले पाय अनितानं जवळ आणले आणि सरळ उभं राहण्याचा प्रयत्‍न केला. मग त्यानं वर टांगलेला दोर खाली सोडून तिचे हातही मोकळे केले. काही क्षणच तिला असं मोकळं सोडून तो पुन्हा तिच्या बाजूला आला. मगाचचं टेबल पुढं ओढून त्यानं अनिताला त्याच्यावर झोपायला लावलं. त्याच्या कुठल्याही कृतीला विरोध करण्यासाठी ना तिच्या शरीरात त्राण होते, ना मनात इच्छा!

टेबलवर तिला पाडून त्यानं तिचे हात वर बांधून टाकले. यावेळी तिचे पाय घोट्यापाशी न बांधता त्यानं तिच्या मांड्यांभोवती पट्ट्या गुंडाळल्या. टेबलाच्या दोन्ही बाजूंना असलेल्या हुक्समधे या पट्ट्या अडकवून टाकल्यानं अनिताचा योनीप्रदेश आता मगाचच्या पेक्षा जास्त उघडा पडला. आता समोरुन तिच्या गुलाबी योनीपाकळ्या फाकलेल्या दिसत होत्याच, शिवाय अजून तिच्या मागच्या भोकातच असलेला रबरी प्लगसुद्धा व्यवस्थित दिसत होता. त्यानं थोडा वेळ तिला तशाच अवस्थेत सोडून दिलं. आता खोलीत बसलेल्या आणि आपल्याकडंच बघणार्‍या लोकांच्या विचारानं तिला लाजेबरोबरच उत्तेजनाही वाटू लागली. अमितसुद्धा आपल्या आजूबाजूला आहे हे आठवून ती निर्धास्तपणे त्या टेबलवर पडून राहिली, पुढच्या हल्ल्याची वाट बघत…

आणि मग तिला जाणवला व्हायब्रेटरचा परिचित स्पर्श… आधी तिच्या पायांवर, मग तिच्या पुष्ट मांड्यांवर, मग तिच्या सपाट पोटावर, खोलगट बेंबीभोवती, आणि मग हळूहळू वर सरकत तिच्या दोन्ही स्तनांवर, तिच्या कडक निप्पल्सवर. इतक्या कमी वेळात आपण पुन्हा उत्तेजित होतोय यावर तिचा स्वतःचा विश्वास बसत नव्हता. तिच्या फाकलेल्या मांड्यांमधून तिच्या योनीरसाचा ओघळ तिच्याच गुदाभोकाकडं चाललेला तिला जाणवला. आणि तो ओघळ टिपणार्‍या पंधरा-वीस अनोळखी स्त्री-पुरुषांच्या नजरा आठवून ती प्रचंड उत्तेजित झाली. अनावर होऊन तिच्या तोंडातून ‘आह्‌ आह्‌’ असे विव्हळण्याचे आवाज येऊ लागले.

अचानक व्हायब्रेटर बंद झाला. अनिताची उत्तेजना आता तिच्या शरीरात मावत नव्हती. ती जोरजोरात विव्हळू लागली, ओरडून ओरडून त्या अनोळखी पुरुषाला जवळ बोलवू लागली. काही सेकंदच मधे गेले असतील आणि मग तिला अतिशय अनोळखी आणि अनपेक्षित स्पर्श जाणवला तिच्या दोन मांड्यांच्या मधे…

आश्चर्यानं तिनं मान वर उचलून बघितलं तर तो अनोळखी तरुण चक्क तिच्या योनीपाकळ्यांवरुन आपली लांबसडक जीभ फिरवत होता. तिनं समाधानानं हसून त्याच्याकडं बघितलं आणि मग टेबलावर मागं मान टाकून आपलं शरीर सैल सोडून दिलं. आता तो तिच्यासाठी अनोळखी नव्हता. खोलीतली इतर माणसं तिच्यासाठी अस्तित्वात नव्हती. अमितचा तर विचारसुद्धा तिच्या डोक्यात नव्हता. त्या तरुणाच्या लांब आणि राकट जिभेचं स्पर्शसुख अनुभवत ती डोळे मिटून निपचीत पडून राहिली. पुढच्या ऑरगॅजमवेळी तिच्या चेहर्‍यावर भलं मोठं हसू होतं.

किती वेळ तो तिची योनी चाटत होता, किती वेळ ती अशी टेबलवर पडून होती, जागी होती की झोपली होती… काही कळायला मार्ग नव्हता. तिला फक्त एवढंच कळालं की, खोलीमधे पुन्हा ते दोघेच उरले होते, तिचे हातपाय मोकळे सोडले होते, तिच्या गुदाभोकात घातलेला रबरी प्लग काढून टेबलावर शेजारीच ठेवला होता, आणि तिच्या आयुष्यातलं परमोच्च संभोगसुख प्रत्यक्ष संभोग न करताच तिला मिळवून देणारा तो अनोळखी तरुण तिच्यासमोर अदबीनं उभा होता. सावकाश उठून ती टेबलवरुन खाली उतरली. त्याच्या हातात तिचे कपडे होते. आता कपडे घालताना मात्र तिनं त्याच्याकडं पाठ केली… लज्जारक्षणासाठी नव्हे, तिच्या टाईट ब्रेसियरचं हुक लावून देण्यासाठी. त्यानंदेखील आनंदानं तिला कपडे घालायला मदत केली.

कपडे घालून झाल्यावर तो अनिताला घेऊन पुन्हा त्या वॉचमन केबिनपर्यंत आला. समोर तीच काळी मर्सिडीज उभी होती. मर्सिडीजचा ड्रायव्हर, रमेश, तिच्यासाठी दार उघडून थांबला होता. ड्रायव्हरचं नाव आठवताच अनिताला खुदकन्‌ हसू आलं. मागं वळून तिनं त्या ‘अनोळखी तरुणा’ला भेटल्यापासून पहिल्यांदाच विचारलं,

“तुझं नाव काय?”

तो हसला. तिच्या जवळ सरकत त्यानं तिचा हात हातात घेऊन दाबला आणि म्हणाला,

“माझं नाव महत्त्वाचं नाही. पण मला पुन्हा भेटावंसं वाटलं तर अमितलाच सांग. तो नक्की तुला माझ्याकडं घेऊन येईल. लवकरच भेटू…”

त्याला मिठी मारुन त्याचं एक रसरशीत चुंबन घ्यावं असं अनिताला मनापासून वाटलं. पण तिला वाटेल ते करण्याइतके त्राण तिच्या शरीरात आता उरले नव्हते. त्यामुळं नुसतंच हसून तिनं त्याला “थँक्स” म्हटलं आणि गाडीकडं चालू लागली.

गाडीत मागच्या सीटवर अमित तिची वाट बघत होता. आत शिरताच अनितानं स्वतःला अमितच्या कुशीत झोकून दिलं. अमितनं तिच्या डोक्यावर प्रेमानं थोपटत ड्रायव्हरला निघण्याचा इशारा केला.

ती काळी मर्सिडीज पुन्हा इंडस्ट्रीयल एरियाच्या अरुंद रस्त्यांवरुन गजबजलेल्या शहराकडं धावू लागली. अमितनं बाजूला ठेवलेला व्हिडीयो कॅमेरा हातात घेतला आणि अनिताकडं त्याचा डिस्प्ले धरत म्हणाला,

“गाडीतून उतरल्यापासून तू जे काही केलंस… किंवा तुझ्यासोबत जे काही केलं गेलं, ते सगळं या व्हिडीयो टेपमधे आहे. कसली धाडसी आहेस तू, अनि! आय होप, तू हे धाडस एन्जॉय केलंस…”

अनिता फक्त हुं हुं करत त्याच्या कुशीत सुस्तावली होती. तिच्या चेहर्‍यावरुन ओसंडणारं हसू आणि समाधानच तिच्या वतीनं बोलत होतं. तिला बोलण्याचाही त्रास न देता पुन्हा थोपटत अमितनं तिच्या धाडसाची टेप प्ले केली. आजचा प्लॅन तर यशस्वी झाला. आता पुढच्या धाडसासाठी अनि लवकरच तयार होईल, या विचारानं तो स्वतःवरच खूष झाला होता...

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दोस्तों ,
प्रस्तुत है सुन्दर अर्ध-नग्न युवतियां अपनी जवानी के जलवे बिखेरते हुए। आशा है कि आप सभी को पसंद आएगा। यदि आपको कुछ सुझाव देना है तो आपका स्वागत है। साथ में Reps एवं Likes से गौरन्वित भी करते जाइए।


Dear Friendz,

Presenting here juicy non-nude babes radiating vigor of their youth. Hope you all will like. If you want to comment/suggestion, then you are most welcome. Also do give LIKES & REPS for the good posts.


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Monday 25 January 2016

शोभा-Marathi sexy Story

शोभा-Marathi sexy Story

शोभा-Marathi sexy Story

सुचना: कुणीही केवळ ह्या कथा वाचून असे काही करायला जाऊ नये.  स्त्रीशी संग म्हणजेआगीशी खेळ हे पक्के लक्षात असू द्या. फक्त कल्पनाविलासासाठी वाचनाचा आनंद घ्या.

मित्रांनो, मी दहावीत शिकत असतानाची ही गोष्ट. आमच्या गल्लीमध्ये माझ्या घराच्या पुढे चार घरे सोडून शोभाताई रहायची. तिचे शिक्षण पूर्ण झाले होते. व ती घरीच असायची. तिची आई कामाला जायची. व तिचे बाबा कामानिमित्त बाहेरगावी असायचे. तिचा भाऊ इंजिनीअरिंग करीत होता व तो होस्टेलवर रहायचा. दिवसभर शोभाताई घरी एकटीच असायची. तिचे व माझ्या आईचे खुप जमायचे. ती सतत आमच्या घरी यायची. माझ्या आईला ती कामात मदत करायची. आईला ती काकू म्हणायची. माझा लहान भाऊ खुप वात्रट होता. म्हणून आईने तिला त्यांच्या घरी माझा अभ्यास घेण्याची विनंती केली. ती पण हो म्हणाली.
मग मी रोज तिच्याकडे जाऊ लागलो. ती खुपच छान अभ्यास घ्यायची. ती शिकवताना कधी रागवायची नाही. खुप समजुन सांगायची. मला लगेच समजायचे. मग मी दहावीची परीक्षा दिली.सर्व पेपर खुपच छान गेले. मी रोज शोभाताईकड़े जायचो. संध्याकाळी मात्र मी मित्रांकडे जायचो. आम्ही सर्व जमलो की पोरींची टवाळी करू लागलो होतो. पोरिंविशयी मला खुप आकर्षण वाटु लागले होते. पण साला एक पोरगी पटेल तर शप्पत. एखाद्या मुलीचे मोठे गोळे बघितले की आमचा बाबुराव खाडकन जागा व्हायचा. मग मात्र त्याला शांत करता करता नाकि नऊ यायचे.

शोभाताई दिसायला खुप सुन्दर होती. ती साधारणपणे २० वर्षाची असावी. गोरी गोरीपाण सुन्दर नयन, नाक थोड़े छोटेसे होते पण तिचे ओठ नाजुक व गुलाबी होते. ती उंच होती पण थोडीशी जाड होती.केस काळेभोर व तिच्या नितंबाना स्पर्श करीत होते. वक्ष मोठे व उभारदार होते.ती घरात नेहमी परकर व पोलका घालायची. तिचे नितम्ब खुपच सुन्दर व कड़क होते. तिची त्वचा खुपच मुलायम होती. ती खुपच मादक व खळखळउन हसायची. तिचे बोलने खुपच गोंड होते. मला ती खुप आवडायची.मात्र माझ्या मनात कधीही तिच्या बद्दल वाईट विचार आले नव्हते.

एक दिवस मी असाच कोपऱ्यावर उभा राहून टवाळकी करीत होतो आणि तेवढ्यात शोभाताई तिथे दुकानात काहीतरी घेण्यासाठी आली होती. माझे अचानक तिच्याकडे लक्ष गेले. मी खुप घाबरलो. पुरता भेदरून गेलो होतो मी. मला काहीच सुचेना. म्हटले, बोम्बला, आपली काही खैर नाही आता. मी शोभाताई जवळ गेलो ती नाक फेंदारून रागाने माझ्याकडे पाहत निघून गेली. मी मग थोडासा धीर एकवटून तिच्या मागे गेलो. ती माझ्याच घरात घुसली.गोट्या कपाळात जाने म्हणजे काय ते मला आत्ता समजले. तसाच मनाचा हिय्या करून घरात घुसलो. तिने माझ्या आई जवळ सामान व पैसे दिले आणि ती जाऊ लागली. मी तिला घराबाहेर जाऊ दिले मग तिच्या मागे गेलो आणि तिच्याशी बोलण्याकरीता तिला थांबवू लागलो, पण ती मला भिक घालायला तयार नव्हती. मी हिरमुसला होउन तिथून निघालो. माझे कशातच लक्ष लागत नव्हते. संध्याकाळी मी परत मित्रांकडे गेलो. पण तिथेही माझे मन रमेना. रम्याने मला विचारले, काय झालय रे तुला. मी त्याला सर्व परिस्थिति सांगितली. तर तो म्हणाला, अरे सोड रे, ती तरी कुठे साजुक आहे. ती नाही का सुरेशदादाला चढवून घेत. काय? मी जवळ जवळ किंचाळलोच. तो म्हणाला खरेच बोलतोय मी , हवे तर संजाला विचार. संजाने पण मान डोलावली. मला खुप राग आला होता. मी तिथून तड़क घरी आलो. शोभाताईबद्दल कुणी असे काही बोलले तर मला ते आवडत नव्हते. शोभाताई रोज आमच्या घरी यायची पण माझ्याशी ती बोलत नव्हती.

मग तो दिवस उजाडला. त्या दिवशी माझा रिझल्ट होता. माझे बाबा घरी नव्हते म्हणून मी व माझी आई शाळेत गेलो. मला ८९% पडले होते. आई खुप खुश झाली. मग आम्ही येताना वाटेत थांबुन पेढे घेतले आणि घराकडे निघालो. रस्त्यात माझा एक मित्र भेटला. मी आईला सांगुन त्याच्याजवळ थांबलो. आईने लवकर घरी येण्यासाठी बजावले. मी हो म्हणालो. थोडा वेळ त्याच्याबरोबर टाइमपास केला आणि घरी आलो. घरी आल्यावर आईने तोंडहातपाय धुवून देवा जवळ पेढा ठेवायला सांगितला. देवाजवळ पेढा ठेवल्यावर आईने एक पेढा मला भरविला व स्वत एक पेढा खाल्ला अन मला म्हणाली जा पहिला जावून शोभाताईला पेढे देऊन ये. मी गप्प झालो व तिथेच घुटमळत राहिलो. आई म्हणाली, अरे जा ना. मी म्हणालो, आई ती माझ्यावर चिडली आहे. ती माझ्याशी बोलत नाही. तर आई पटकन म्हणाली, अरे जा काही नाही होत. तूच काहीतरी वात्रटपना केला असशील. ती मोठी आहे ना तुझ्यापेक्षा. तिनेच तुझा अभ्यास घेतलाना. जा तिला पेढा पण दे आणि तिची माफ़ी पण माग. मला माहित आहे तिचा स्वभाव. ती कधी कुणावर चिडत नाही. आईने असे म्हनल्यावर मला खुप बरे वाटले. मी तड़क तिच्या घरी गेलो. दरवाजा बंद होता, म्हणून मी थोडासा लोटला तर तो उघडला मी मनाचा हिय्या करून आत गेलो. शोभाताई पलंगावर ओणवी होउन कसले तरी पुस्तक वाचत होती. मी हळूच तिला हाक मारली व म्हणालो शोभाताई, मला ८९% पडले. तिने पटकन ते पुस्तक उशीखाली ठेवले आणि माझ्याकडे पाहत उठली आणि मला मीठी मारली. व म्हणाली, ग्रेट मला माहित होते की तुला खुप चांगले मार्क्स मिळणार. असे म्हणून तिने माझी पप्पी घेतली व म्हणाली आधी पेढे दे. मी पुडा तिच्यासमोर धरला. तिने त्यातून एक पेढा काढून मला भरविला. पेढा खाताना मी तिला म्हणालो अग तू पण खा ना. तर ती म्हणाली मी तुला पेढा भरविला आता तू मला भरव. मी तिला पेढा भरवला.पेढा खातखात ती म्हणाली बंटी मला आज खुप आनंद झालाय, तू अगदी माझ्या अपेक्षेप्रमाने मार्क्स मिळविलेस. सांग तुला काय गिफ्ट हवय. मी म्हणालो काही पण तुला आवडेल ते दे. तिचा मूड बघून मी पटकन तिला म्हणालो, शोभाताई सॉरी, मी त्या दिवशी चुकलो, मी परत नाही असे करणार. तिने परत मला जवळ ओढले आणि माझ्या गालाची पप्पी घेत म्हणाली, मला माहित आहे तू असा नाहीस पण कुठल्याही मित्रांच्या नादाने तू काही चुकीचे करावे असे मला नाही वाटत. तिचे उरोज माझ्या हनुवटी आणि ग़ळ्याला स्पर्श करीत होते. तिचा तो उबदार स्पर्श मला मोहुन टाकित होता. मी ही तिला बिलगलो. बंटी, अरे असे छेडून मुली पटत नसतात. मी म्हणालो, माझा तस हेतु नव्हता. ती हसून म्हणाली अरे तुझ्या वयात मुलींबद्दल आकर्षण निर्माण होने हे काही नवीन नाही. मुली पटवन्याचे अनेक मार्ग आहेत. मी तुला शिकवल मुलींना कसे पटवायचे ते. आणि मला विचारले तुला कशा मुली आवडतात? मी म्हणालो की स्वभावाने छान आणि दिसायला सुन्दर. तिने थोडा विचार केला आणि म्हणाली सुन्दर म्हणजे कुनासारखी? मी म्हणालो तुझ्यासारखी खुप सुन्दर नसेल तरी चालेल. तिने परत मला मीठी मारली अणि विचारले मी एवढी सुन्दर आहे का? मी म्हणालो हो प्रश्नच नाही. ती म्हणाली तू माझ्यात काय पाहिले की मी तुला सुन्दर दिसते. मी म्हणालो तुझा गोरा रंग.ती म्हणाली बस गोऱ्या रंगामुळे मी तुला सुन्दर दिसते. मी म्हणालो नाही ग तुझे लांबसड़क काळेभोर रेशमासारखे केस, तुझे टपोरे डोळे, तुझे लाल लाल कान, तुझे गुलाबाच्या पाकळयासारखे ओठ. ती लड़ीवाळपणे मला म्हणाली सांग ना आणखी काय आवडते? तुझा गोंड गळा. ती म्हणाली पुढे बोल ना. आता माझा बाबुराव उठू लागला होता. मी तुझ्या छातीवरचे ते दोन मोठे गोळे म्हणता म्हणता माझे शब्द गिळून म्हणालो शोभाताई तू खुप सुन्दर आहेस. तिने परत माझ्या गालाची पप्पी घेतली. मी घाबरत तिला विचारले शोभाताई मी पण तुझी पप्पी घेऊ का? काही न म्हणता तिने डोळे मिटून घेतले. मग मी धीर एकवटून तिच्या गालाच्या जवळ माझे ओठ नेताना पाहिले तिचे ओठ थरथरत होते. तिच्या सर्वांगावर शहारे आले होते. ते पाहून मी तिच्या ओठांवर माझे ओठ ठेवले. ती काहीच म्हणाली नाही. आता मात्र माझा बांध तुटू लागला. मग मी पहिल्यांदा तिला खुप आवळले आणि तिच्यावर माझ्या मुक्यांचा वर्षाव करू लागलो. ती पण मला प्रतिसाद देत होती. माझे हाथ तिच्या मानेवर गेले होते. मग मी तिच्या तोंडात तोंड घालून तिचा मुका घेत होतो. आम्हाला दोघानाही सर्व जगाचा विसर पडला होता. तिचे मुलायम हाथ एव्हाना माझ्या शर्टमध्ये घुसले होते. ती हळूवारपणे तिचा मुलायम हात माझ्या छातीवर फिरवित होती. मग मी पण मुका घेत घेत माझा एक हात हळूच तिच्या छातीवर आणला आणि तिच्या एका उरोजाला दाबले. ती हळूच सित्कारली. मी तिच्या पोलक्यावरुनच तिचे गोळे कुस्करत होतो. ती खुप गरम झाली होती. तिने माझ्या शर्टची बटने काढ़ायला सुरवात केली.तिचे कान लालबुंद झाले होते. मी हळूच तिच्या कानाचा चावा घेतला. तशी ती पुन्हा सित्कारली. तिने माझा शर्ट काढला. माझ्या प्यांटीतुन माझ्या लवडयाचा उभार स्पष्ट दिसत होता. ती वरुनच माझ्या लवडयाला कूरवाळू लागली. कुरवाळत असताना तिने मला हलकेच ढकलत पलंगाकडे सरकावले. मी पलंगावर पडलो आणि ती माझ्या अंगावर पडली. मी परत तिचा मुका घेतला व तिच्या पोलक्याची बटने काढू लागलो. तिची सर्व बटने मी पटापट काढली व तिचा पोलका बाजूला केला. तिने सफ़ेद ब्रा परिधान केली होती. तिचे ते सुन्दर गोरेपान शरीर बघून मी वेडा झालो. मी तिचे दोन्ही स्तन तसेच कूरवाळू लागलो. मग मी तिला माझ्या जवळ ओढले व तिची ब्रा काढू लागलो पण मला काही जमेना. मग मी तिला ब्रा काढायला सांगितली. ती उठली आणि माझ्याकडे पाहून हसली. मला कळेना ती का हसली, पण लगेच मला उमगले की तिच्या ब्रा चे हुक पुढेच होते. तिने हुक काढताच तिची दोन्ही कबूतरे मोकळी झाली. केवढे मोठे स्तन होते तिचे. त्याच्या अग्रभागी गुलाबी रंगाची तिची कड़क बोंडे त्या गोऱ्या स्तनांचा आकर्षकपणा वाढवित होती. तिच्या स्तनांवर हिरव्या रंगाच्या नसा फुगून स्तनान्मध्ये ताठरपना आला होता. मग मी हळूच तिचा एक स्तन तोंडात घेतला आणि त्याला चोखू लागलो. तशी शोभाताई खुपच वेडीपीशी झाली. मग तिने माझी चेन काढून आत हात घातला. माझा लवडा ती दाबू लागली. माझ्या मस्तकातुन एक जोराची कळ निघाली. आज पहिल्यांदाच कोणीतरी माझ्या लवड्याला हात लावला होता. मला खुप बरे वाटत होते. तिने माझ्या प्यांट चे बटन काढले व माजी प्यांट ती हळूहळू काढू लागली. माझी जींस असल्याने ती खाली सरकवताना माझी अंडरविअरपण थोड़ी खाली सरकली आणि माझा लंड त्यातून थोडा बाहेर आला. शोभाताई ने हे पाहताच माझ्या अंडरविअरमध्ये हात घालून खाली सरकवली व माझा ताठलेला लवडा हातात घेउन त्याच्याशी खेळू लागली. मला असे वाटु लागले की आता माझ्या लवडयातुन काहीतरी बाहेर पडणार मी तिला लगेच थाम्बवले. तिने विचारले काय झाले. मी म्हणालो मला असे वाटतय कि आता माझा चिक बाहेर पडतोय. ती म्हणाली," मग तू आता कर ना." मी म्हणालो," ठीक आहे." मग ती पलंगावर आडवी झाली. मी तिच्या परकराची नाडी खेचली. मी तिचा परकर खाली ओढू लागलो. परकर खाली खेचताना मला तिची बेम्बी दिसली. तिची बेम्बी खुपच सुन्दर होती असे वाटत होते की त्याची पप्पी घ्यावी पण आता मी कंट्रोल करू शकत नव्हतो. तिचा परकर खाली खेचताच तिच्या गोऱ्या गोऱ्या मांड्या वरची तिची निळ्या रंगाची फुलांची चड्डी दिसू लागली. तिचे शरीर म्हणजे संगमरवरच वाटत होते. आता माझ्या सहनशक्तीचा अंत झाला होता. मी पटकन तिची चड्डी खाली ओढली आणि मला तिची पुच्ची दिसू लागली. काय सुन्दर भूरी पुच्ची होती. तिची काळीभोर आणि मुलायम झाटे बघून मला कधी एकदा माझा लंड तिच्या पुच्चित घालतो असे झाले होते.

मी माझी अंडरवेअर पटकन काढून टाकली, आणि मग मी तिच्या अंगावर आडवा झालो. आम्ही दोघेही खुपच गरम झालो होतो. शोभाताईची छाती वरखाली होत होती. तिचे ते हलणारे पुष्ट उरोज पाहून मी चेकाळलो होतो मी माझा ताठलेला लवड़ा हातात धरून तिच्या पुच्चिवर रगडत होतो. श्या, पण काही केल्या मला जमेना. शोभाताईला खुदकन हसू आले व म्हणाली, "जागा सापडत नाही का?" मी रागाने हो म्हणालो. पण खरेच माझी पहिली वेळ असल्याने काही जमत नव्हते. माझ्या सहनशक्तीचा अंत झाला होता. माझी करुण अवस्था पाहून शेवटी शोभाताईनच माझा ताठ्लेला बुल्ला हातात धरून पुच्चिवर ठेवला. आणि हळूच माझ्या कानात म्हणाली, " बंटी, आता हळूच आत घुसव." मला कसला धीर. मी दिला जोरात दनका. तशी ती किंचाळलीच. आई ग़! लवड़ा आत गेल्यावर मी कंबर हलवायला सुरवात करणार तोच माझा बाबाजी परत बाहेर. मी परत लवड़ा तिच्या पुच्चीच्या जवळ नेला आणि शोभाताईला विनंती करू लागलो. तर ती म्हणाली," बंटी, तू पुन्हा धसमूसळ्यासारख करशील. मला त्रास होइल." मी म्हणालो," नाही आता मी हळूच घालीन." मग तिने परत माझा लवड़ा हातात पकडून पुच्चिवर ठेवला. मग मी हळूच आत घातला. आणि तिने तिच्या पायाची घडी माझ्या मांड्यावर टाकली आणि मला म्हणाली," आता हळूहळू कंबर हालव." मग मी तिला झवु लागलो. तिच्या तोंडातून हळूहळू आवाज येत होते आणि चेहऱ्यावर लालिमा चढला होता. दोनच मिनिटात माझा बार उडाला. माझी पहिलीच वेळ असल्याने चांगल्या सात ते आठ चीळकाड्या उडाल्या आणि धापा टाकत तिच्या अंगावर पडलो. पहिल्यांदा मला कळेना की मी मुतलो की वेगळे काही घडले. शोभाताई ने मला पटकन बाजूला ढकलले. व ती उठू लागली. मी तिला उठताना तिच्या पुच्चीच्या जवळ पाहिले तर तिच्या पुच्चीतुन माझा कामरस बाहेर पाझरत होता आणि चादरीवर जवळ जवळ अर्धी वाटी तरी माझा चिक पडला होता. तिने तशीच नागव्याने चादर ओढून घेतली व ती बाथरुमकडे पळाली. तिची गोरी गांड हलताना बघून मी परत वेडा झालो. आयुष्यात मी आज पहिल्यांदा झवलो होतो. माझा लवडा पूर्ण चिकाने भरला होता. मी तसाच पलंगाच्या कोपऱ्यावर तिची वाट पाहत बसलो. तेवढ्यात माझे लक्ष उशीकडे गेले. चादर ओढताना उशी खाली पडली होती. आणि तिचे पुस्तक पण पडले होते. मी सहज चाळन्याकरिता म्हणून उचलले आणि उडालोच. पुस्तकामध्ये सर्व नागडी आणि झवाझवीची चित्रे होती आणि गोष्टी पण सगळ्या त्याच होत्या. त्यातली एक कहानी मी वाचू लागलो. ती बहिन भावाच्या झवाझविची होती.त्यातील चित्रे पाहून माझा बुल्ला परत ताठ झाला. मी समजलो ही पुस्तक वाचून गरम झाली होती. पण शोभाताईकडे हे पुस्तक आले कुठून? असा प्रश्न मला पडला. मनात म्हणालो, जाऊ दे आपल्याला काय करायचे आहे. आज त्यामुळे कमीतकमी झवायला तरी मीळाले. मी माझ्या लवडयाला हातात धरून बसलो होतो तेवढ्यात शोभाताई येत असल्याची चाहुल लागली व मी ते पुस्तक खाली ठेवून परत पलंगाच्या कोपऱ्यावर तिची वाट पाहत बसलो. शोभाताई चादर व तिची पुच्ची धुवून आली. तिने चादरिची घडी करून घरातच वाळत टाकली. आणि माझ्या जवळ येवून लाडेलाडे म्हणाली, जा ना बंटी धुवून ये." मी तिच्या बाथरुममध्ये गेलो लवडा चांगला चोळून धुतला. आणि बाहेर आलो शोभाताईने ब्रा घातली होती आणि ती खाली वाकून चड्डी घालित होती. मी तिच्या गांडीजवळ जावून माझा लवड़ा तिच्या गांडीला टेकवला. आणि तिच्या कम्बरेला धरून तिला जवळ ओढले. ती म्हणाली," आता पुरे ना." मी म्हणालो," नाही मला आणखी एकदा करायचे." मग ती काही ना बोलता माझ्या दांड्यावर बसली. मी मागुन तिच्या मानेचे पटापट मुके घेऊ लागलो. पुस्तक पाहून माझा लवड़ा चांगलाच खवळला होता. तिच्या गांडीमध्ये तो रुतत चालला होता. असे वाटत होते की तिची गांड मारावी, पण मी तो विचार सोडला. दोन्ही हाताने तिची ब्रा वर सरकवून मी तिच्या स्तनांची बोंडे चोळू लागलो. तिचे पुष्ट उरोज माझ्या हातात मावत नव्हते. ती गरम व्हायला लागली होती. मग ती उठली व मला म्हणाली, "बंटी, करणारे लवकर." मी तिला म्हणालो, " शोभाताई, तू माझा लवड़ा चोखशील." ती हादरलीच. मला म्हणाली,"काय?" मी म्हणालो, " शोभाताई, त्या पुस्तकातल्या चित्रासारखा तू पण चोख ना." ती माझ्याकडे विस्मित होउन पहात म्हणाली," तू कधी पाहिलेस ते पुस्तक?" मी म्हणालो," आत्ताच." आणि तिच्या कानाचा हलकेच चावा घेत म्हणालो, "चोखशील ना?" तर ती थोडा विचार करून म्हणाली," जर तू माझी चाटली तरच." मी आनंदाने हो म्हणालो व तिच्या पायाजवळ गेलो आणि तिच्या दोन्ही मान्सलदार मांड्या फाकविल्या. समोर तिची झाटात लपलेली पुच्ची दिसू लागली.मी हलकेच तिची झाटे बाजूला करू लागलो आणि

तिची मुलायम व कुरुळी काळीभोर झाटे माझ्या बोटाना मोरपिसासारखी वाटत होती. मी माझ्या नखाने त्याना भांग पाडल्यासारखे बाजूला करीत होतो. बहुतेक तिने तिचे मैदान कधीच साफ़ केले नव्हते. मी तिची झाटे बाजूला केल्यावर मला तिची गोरी पुच्ची दिसू लागली. तिच्या पुच्चिचे ओठ बोटाने बाजूला करताच तिची गुलाबी योनी व त्या वरचा तिचा छोटासा पण गोंडस दाना दिसू लागला. मी हळूच तिच्या दान्याला माझ्या जिभेचा शेंडा लावून गोलगोल फिरवू लागलो. तशी ती वेडीपिशी झाली. मी तिच्या कडे हळूच एक कटाक्ष टाकला. तिने डोळे घट्ट मिटून घेतले होते व तिचे ओठ कोरडे पडले होते. त्या कोरड्या ओठावरुण ती जीभ फिरवित होती. तिचे वक्ष जोरजोरात वर खाली होत होते. तिने एका हाताने चादर घट्ट पकडली होती व तिचा दूसरा हात माझ्या केसात रुतून माझ्या डोक्याला खाली ढकलण्याचा प्रयत्न करीत होता. मग मी तिच्या सुन्दर झाटावरुन माझी जीभ फिरवायला सुरुवात केली. माझे एक बोट तिच्या पुच्चीच्या ओठावरून फिरवित होतो. झाटे चाटून मग माझ्या जिभेने तिच्या पुच्चित प्रवेश करताच तिच्या तोंडातून आ उम आह उ असा हळू आवाज येऊ लागला. त्या आवाजाने मी बेफाम होउन जोर जोरात तिच्या पुच्चीच्या आत बाहेर जीभ करू लागलो. ती खुपच वेडी झाली होती व म्हणत होती की तू खुपच छान चाटतोयस. अजुन चाट. मग बहुधा ती झडनार असावी म्हणून तिने मला बाजूला केले व उठून ती माझा मुका घेऊ लागली. माझ्या लवड्यात खुप सुरसूरी होत होती. आता माझा लवड़ा चोख असे मी म्हणायच्या आत शोभाताई गुडघ्यावर बसली आणि तिने माझा लवड़ा हातात घेतला. त्याला कुरवाळीत ती निरखून पहात होती. आणि ती पटापट त्याच्यावर चुम्बनांचा वर्षाव करू लागली. मग ती पटापट माझ्या गोट्यानाही चोखू लागली हातात लवड़ा धरून ती वाकून माझ्या गोट्या चोखित होती. मी हवेत तरंगत होतो. मग तिने माझ्या लवड्याच्या शेंड्यावरुन जीभ फिरवायला सुरवात केली. माझ्या मस्तकापर्यंत कळा जात होत्या. मी तिच्या अम्बाड्यात हात घालून तिच्या डोक्याला मागे पुढे करू लागलो. त्यामुळे तिचा अम्बाडा सुटला आणि तिचे केस मोकळे होउन तिच्या मांसल नितम्बान्वर लोळू लागले होते. ती खुपच सुन्दर दिसत होती. बराच वेळ लवड़ा चोखल्यानंतर ती जावून पलंगावर आडवी झाली. तिचा मूक इशारा समजुन मी तिच्या दोन्ही मांड्याच्यामध्ये गेलो. आणि तिच्या स्तनाना कुरवाळू लागलो. मग तिने माझा लंड हातात धरून पुच्चिवर सेट करून दिला. मी हळूहळू लंड तिच्या पुच्चित घुसवला आणि कंबर हलवून तिला झवु लागलो. ती मोठमोठ्याने सुस्कारे सोडू लागली होती. तिला झवताना तिचे सुस्कारे ऐकून मी जास्तच चेकाळत होतो. मग मी हळूच माझा लवड़ा तिच्या पुच्चीतुन बाहेर काढला तिला वाटले चुकून निघाला असेल म्हणून ती परत हातात घेउन पुच्चिवर ठेवू लागली पण मी मी मुद्दाम पुढे सरकत नव्हतो. तिने माझ्याकडे पाहून डोळे दटावित मला म्हणाली," घाल ना बंटी, लवकर." मी म्हणालो," कुठे घालू ?" ती मिस्किलपने माझ्याकडे पहात

शोभाताई म्हणाली," अरे असे काय करतोस. मघाशी कुठे घातलास ?

मी ,"कुठे ?"

शोभाताई," तू पुढे सरक मी करते."

मी," हो पण आधी त्याला काय म्हणतात ते सांग ना ?

शोभाताई : चल ना रे बंटी का छळतोस.

मी : एकदाच सांग ना.

शोभाताई : मला नाही माहित.

मी : अग तू पुस्तक वाचतेस ना. मग काय म्हणतात ते वाचले असशील ना?

शोभाताई : आता फाजिलपना पुरे. तू करणार आहेस की नाही ते सांग.

ती वैतागली होती. बापरे अशा निर्णायक क्षणाची वेळ येइल असे वाटले नव्हते. मग मी साफ़ शरणागति पत्करित म्हणालो ," प्लीज़ शोभाताई सांग ना." ती म्हणाली ," आधी तू कर, मगच मी सांगेन" मग मी परत लवड़ा तिच्या पुच्चिवर ठेवला आणि तिने हाताने सेट केला मग मी आत घुसवू लागलो. लवड़ा पूर्ण आत गेल्यावर मी तिच्या अंगावर पडलो आणि तिच्या कानाला थोडेसे जिभेने चाटले आणि मग हळूच तिच्या कानात म्हणालो ," सांग ना, शोभाताई, प्लीज़." मग ती पण हळू आवाजात माझ्या काना जवळ येवून म्हणाली ," बंटी, त्याला पुसी म्हणतात." मी म्हणालो, " नाही ग़, शोभाताई, मराठीत काय म्हणतात सांग ना?" लवड़ा आत ठेवून मी तसाच पडून राहिलो होतो. मग ती म्हणाली, " मला नाही माहित, तूच सांग." मी म्हणालो," शोभाताई, फ़क्त एकदाच सांग, मी पुन्हा नाही विचारणार. मग ती खुपच लाजुन म्हणाली, " पुच्ची." तिचा चेहरा अजुनच लाल झाला होता. मग मी परत तिला झवायला सुरवात केली तसे तिने माझ्या मानेभोवती घट्ट वीळखा घालत मला जवळ ओढले आणि मला विचारले, " बंटी, मी माझ्या ह्याला काय म्हणतात ते सांगितले आता तू पण सांग ना तुझ्या ह्याला काय म्हणतात ते." मी हळूहळू कंबर हलवीत म्हणालो, " लवड़ा." ती आणखिन लाडाने माझ्या केसांमधुंन हात फिरवित म्हणाली, " बंटी, आपण जे करतोय त्याला काय म्हणतात." शोभाताई चांगलीच रंगात आली होती. मी लगेच म्हणालो," झवाझवी"

मी खुपच उत्तेजित झालो होतो. माझा स्पीड वाढला होता. मला कंट्रोल होत नव्हते. मी खुप जोरजोरात कंबर हलवू लागलो. ती सित्कारत होती. स स स सु सी आ सी स स करत होती तिने डोळे घट्ट मिटून घेतले होते. ती खुपच सुन्दर दिसत होती. मी तिला झवताना तिचे दोन्ही गोळे दाबत होतो. आम्ही दोघेही घामेघुम झालो होतो. तिची पुच्ची खुपच ओली झाली होती. लवड़ा आत बाहेर करताना पचाक पचाक असा आवाज येत होता. शोभाताई झवन्याचा पुरेपुर आनंद घेत होती. तिचे सुस्कारे माझ्या लवड्याला चेकाळून टाकित होते. माझी दोन्ही कानशिले गरम झाली होती. शोभाताईच्या चेहरयावर घाम आला होता आणि तिचे ५ /६ केस त्या घामात भिजले होते. मला राहवले नाही मी पटकन तिची पप्पी घेतली. आणि तिच्या घामाने माझी जीभ खारट झाली मला तो स्वाद खुप आवडला. मग आम्ही दोघेही चरम सीमेवर पोहोचलो. मी माझा रस तिच्या पुच्चित सोडून दिला आणि तिच्या अंगावर पडून राहिलो. तिने पण मला घट्ट मीठी मारली. माझे तोंड तिच्या उरोजान्मध्ये दबले गेले होते. तिचे उरोज अजुनही वरखाली होत होते आणि तो स्पर्श मला मोहुन टाकित होता. असे वाटत होते की कायमचे असेच पडून रहावे. ती माझ्या केसांमधुन बोटे फिरवित होती. तिच्या मुलायम स्पर्शाने मला स्वर्ग सुख मिळत होते.
मग अचानक तिने मला बाजूला सरकवित म्हणाली, " बंटी, उठ. नाहीतर कोणी जर का आले तर प्रॉब्लम होइल. मग मी बाजूला झालो आणि पलंगावर बसलो. ती उठली आणि माझ्या हाताला धरून अक्षरशः बाथरुमकडे ओढत घेउन गेली. बाथरुममध्ये जाताच तिने बादली मधून ताम्ब्या भरून पानी घेतले आणि माझ्या लवड्यावर टाकले. एकदम गार पाण्याचा स्पर्श होताच मी शहारून गेलो, तेव्हा तिने लगेच साबुन हातात घेउन माझा लंड चोळायला केली. माझा लंड धुतल्यावर मला बाहेर ढकलित म्हणाली, बंटी लवकर कपडे घाल, मी आलेच सुसु करून." मी मला पण यायचय असे म्हनन्याच्या आत तिने दरवाजा मिटून घेतला. मी बाहेर जावून कपडे घातले आणि परत पलंगावर जाउन बसलो. शोभाताई सगळे अंग धुवून केस पुसत बाहेर आली. आणि कपडे उचलून एक एक घालू लागली. मी चांगलाच चटावलो होतो. मी तिला म्हणालो, " शोभाताई अजुन एकदा करूयात ना." तिने नकार देत म्हणाली," अजिबात नाही, बंटी आपण हे जे केले ते चुकीचे आहे. माझा माझ्यावर ताबा राहिला नाही आणि ही चुक घडली. आता आपण पुन्हा असे करायचे नाही. आणि चुकून सुद्धा ही गोष्ट कुणाला सांगू नकोस. माझी शपथ आहे तुला." मी म्हणालो," शोभाताई, मी कधीच कुणाला सांगणार नाही. पण आपण काय चुकीचे केले. उलट मला तर खुप मज्जा आली." ती म्हणाली," नाहीरे बंटी, कधी कुणाला समजले तर सगळे मला नावे ठेवतील. आणि तू माझ्यापेक्षा खुप लहान आहेस. शिवाय सगळे आपल्याकडे भाऊ बहिन म्हणून बघतात." मी तिला म्हणालो," अग पण कुणाला समजलेच नाही तर कोण आपल्याला बोलतात आणि आपण सख्खे भाऊ बहिन कुठे आहोत." मी शोभाताईला सम्जवान्याचा प्रयत्न करीत होतो. मला वाटले आता बोम्बला आपल्याला परत कधीच झवायला मीळनार नाही म्हणून हिरमुसलो पण होतो. पण शोभातैने माझी समजुत काढून मला परत पाठविले. शोभाताई मला म्हणाली, "बंटी, चांगली एखादी सुन्दर मुलगी पटव. पाहिजे तर मी तुला मदत करीन." पण मला शोभाताईच हवी होती हे तिला का कळत नव्हते. मला तिचा खुप राग आला होता. मग मी रागातच घरी गेलो.


पुढचे तिन चार दिवस खुप धामधूमित गेले. मला भेटायला आमचे सर्व पाहुणे येवून गेले. माझे मात्र कशातच लक्ष लागत नव्हते. आईने मला विचारन्याचा प्रयत्न केला पण बाबा म्हणाले की जाऊ दे स्वारी हवेतच आहे. मला मात्र माझ्या मार्कांच फारसे कौतुक नव्हते. मला फ़क्त शोभाताईच दिसत होती. मग एके दिवशी मी मनाचा हिय्या करून तिच्या घरी गेलो. मनाशी ठरवले की आज शोभाताई बरोबर बोलुन फ़ाइनल ठरवायचे की तुला मी आवडतो की नाही, आणि जर आवडतो तर तू मला दूर ढकलण्याचा प्रयत्न का करतेस. हवे तर मी तुझ्या बरोबर लग्न करीन. अशा खुपशा विचारांनी माझ्या डोक्यात कहर मजले होते. मला सुरवात कशी करायची ते पण कळत नव्हते. मी तसा खुपच बालिश होतो. विचाराच्या गदारोळातच मी शोभाताईच्या घरी गेलो. दारावरची बेल वाजवन्याआधी मनातल्या गोष्टींची जूळवाजुळव करून मी बेल वाजवली आणि शोभाताईची आई समोर उभी राहिली. माझ्या घशाला कोरड पडली. मला काय बोलावे सुचेना. तिची आई ह्या वेळी घरी असने मला अपेक्षित नव्हते. तिच्या आईने माझ्याकडे पहात हसून विचारले, " काय बंटी, कसा आहेस? काय काम काढले? ये ना आत." मी आत जाताना माझी नजर शोभाताईला शोधत होती. मी बळेच हसून म्हणालो," काही नाही. सहज आलो. पण काकू आज तुम्ही घरी कशा?" तर काकू हसून म्हणल्या," अरे आज आमच्या शोभाला पहायला पाहुणे येणार आहेत ना, म्हणून सुट्टी काढली." "काय?" मी जवळ जवळ किंचाळलोच. तर काकू पुढे सांगू लागल्या," अरे बंटी, खुप चांगला मुलगा आहे. एका मोठ्या कंपनीत तो इंजिनीअर आहे. पगार पण खुप आहे. आणि दिसायला पण छान आहे. शिवाय आमच्या नात्यातला पण आहे." काकू बोलत होत्या पण माझ्या डोक्यावर कोणीतरी मोठा आघात केल्यासारखा वाटत होते. पुढचे मला काहीच ऐकू येत नव्हते. काकुंनी मला मध्येच हलविले आणि विचारले की, " माझे लक्ष कुठे आहे म्हणून." मी काहीतरी थातुर मातुर उत्तर देऊन सताक्न्याचा प्रयत्न करीत होतो तर काकू म्हणल्या," अरे थांब, शोभा येईलच आत्ता." पण मी म्हणालो, " नाही काकू, मी नंतर येतो. मला आईने दुकानात जायला सांगितले होते पण मी विसरलो होतो." काकू म्हणल्या, "ठीक आहे. पण नंतर ये. म्हणजे तुला शोभाचा होणारा नवरा पहायला मिळेल." मी हो म्हणून सटकलो. मला आता काकुंचा पण राग आला होता. मी तिथून कोपरयावरच्या दुकानात गेलो. आणि तिथून मी शोभाताईच्या घराकडे नजर लावून बसलो.

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